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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: बाहल्य आदि प्रतिपादन ] [ १०९ भगवन् ! सौधर्म - ईशानकल्प में विमान कितने रंग के हैं ? गौतम पांचों वर्ण के विमान है, यथा कृष्ण, नील, लाल, पीले और सफेद । सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में विमान चार वर्ण के हैं--नील यावत् शुक्ल । ब्रह्मलोक एवं लान्तक कल्पों में विमान तीन वर्ण के हैं -लाल यावत् शुक्ल । महाशुक्र एवं सहस्रार कल्प में विमान दो रंग के हैं - पीले और सफेद । आनत प्राणत आरण और अच्युत कल्पों में विमान सफेद वर्ण के हैं। ग्रैवेयकविमान भी सफेद हैं। अनुत्तरोपपातिकविमान परम-शुक्ल वर्ण के हैं । भगवन्! सौधर्म - ईशानकल्प में विमानों की प्रभा कैसी है? गौतम! वे विमान नित्य स्वयं की प्रभा से प्रकाशमान और नित्य उद्योत वाले हैं यावत् अनुत्तरोपपातिकविमान भी स्वयं की प्रभा से नित्यालोक और नित्योद्योत वाले कहे गये हैं । भगवन् ! सौधर्म - ईशानकल्प में विमानों की गंध कैसी कही गई है ? गौतम! जैसे कोष्ठपुढादि सुगंधित पदार्थों की गंध होती है उससे भी इष्टतर उनकी गंध है, अनुत्तरविमान पर्यन्त ऐसा ही कथन करना चाहिए । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों का स्पर्श कैसा कहा गया है ? गौतम! जैसे अजिन चर्म, रूई आदि का मृदुल स्पर्श होता है, वैसा स्पर्श करना चाहिए, अनुत्तरोपपातिकविमान पर्यन्त ऐसा ही कहना चाहिए । २०१. (इ) सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा केमहालया पण्णत्ता ? गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवे - समुद्दाणं सो चेव गमो जाव छम्मासे वीइवएज्जा जाव अत्थेगइया विमाणावासा नो वीइवएज्जा जाव अणुत्तरोववाइयविमाणा, अत्थेगइयं विमाणं वीइवएज्जा, अत्थेगइए णो वीइवएज्जा । सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा किंमया पण्णत्ता ? गोयमा ! सव्वरयणामया पण्णत्ता । तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमंति चयंति उवचयंति । सासया णं ते विमाणा दव्वट्ठ याए जाव फासपज्जवेहिं असासया जाव अणुत्तरोववाइयाविमाणा । सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु देवा कओहिंतो उववज्जंति ? उववाओ णेयव्वो जहा वक्कंतीए तिरियमणुएसु पंचिंदिएसु सम्मुच्छिमवज्जिएसु, उववाओ वक्कंतिगमेणं जाव अणुत्तरोववाइया । सोहम्मीसाणेसु देवा एगसमए णं केवइया उववज्जंति ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति, एवं जाव सहस्सारे । आणयादिगेवेज्जा अणुत्तरा य एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा वा उववज्र्ज्जति । सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु देवा समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा केवइए कालेणं अवहिया सिया ? गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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