SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८] [जीवाजीवाभिगमसूत्र दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-वट्टे य तंसा य। सोहम्मीसाणेसु भंते! विमाणा केवइयं आयाम-विक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। जहा णरगा तहा जाव अणत्तरोववाइया संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जे से संखेन्जवित्थडे से जंबुद्दीवप्पमाणे; असंखेज्जवित्थडा असंखेज्जाइं जोयणसयाइं जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु णं भंते! विमाणा कइवण्णा पण्णत्ता? गोयमा! पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा किण्हा, नीला, लोहिया, हालिद्दा, सुक्किला। सणंकुमारमाहिदेसु चउवण्णा नीला जाव सुक्किला। बंभलोगलंतएसु तिवण्णा पण्णत्ता, लोहिया जाव सुक्किला। महासुक्कसहस्सारेसु दुवण्णा हालिद्दा य सुक्किला य।आणत-पाणतारणाच्चुएसु सुक्किला, गेवेज्जविमाणा सुक्किला, अणुत्तरोववाइयविमाणा परमसुक्किला वण्णेणं पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा के रिसया पभाए पण्णत्ता? गोयमा! णिच्चालोया, णिच्चुज्जोया सयंपभाए पण्णत्ता जाव अणुत्तरोववाइयविमाणा णिच्चालोया णिच्चुजोया सयंपभाए पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता? गोयमा! से जहाणामए कोट्ठपुडाण वा जाव गंधेण पण्णत्ता, एवं जाव एत्तो इट्ठतरगा चेव जाव अणुत्तरविमाणा। सोहम्मीसाणेसु विमाणा केरिसया फासेणं पण्णत्ता? से जहाणामए आइणेइ वा रूएइ वा सव्वो फासो भाणियव्वो जाव अणुत्तरोववाइयविमाणा। २०१. (आ) भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों का आकार कैसा कहा गया है? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं-१. आवलिका-प्रविष्ट और २. आवलिका बाह्य । जो आवलिकाप्रविष्ट (पंक्तिबद्ध) विमान हैं, वे तीन प्रकार के हैं --१. गोल, २. त्रिकोण और ३. चतुष्कोण। जो आवलिका-बाह्य हैं वे नाना प्रकार के हैं । इसी तरह का कथन |वेयक विमानों पर्यन्त कहना चाहिए। अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं -गोल और त्रिकोण। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई-चौड़ाई कितनी है? उनकी परिधि कितनी है? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं -संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले। जैसे नरकों का कथन किया गया है वैसा ही कथन यहां करना चाहिए; यावत् अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं -संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले। जो संख्यात योजन विस्तार वाले हैं वे जम्बूद्वीप प्रमाण हैं और असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं वे असंख्यात हजार योजन विस्तार और परिधि वाले कहे गये है।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy