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तृतीय प्रतिपत्ति : बाहल्य आदि प्रतिपादन]
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कल्प और नौ ग्रेवेयक, अनुत्तर विमान आकाश प्रतिष्ठित हैं।' बाहल्य आदि प्रतिपादन
२०१. (अ) सोहम्मीसाणकप्पेसु विमाणपुढवी केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ता? गोयमा! सत्तावीसं जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ता। एवं पुच्छा? सणंकुमारमाहिं देसु छव्वीसं जोयणसयाई, बंभलंतए वीसं, महासुक्क-सहस्सारे सु चउ वीसं, आणय-पाणयआरणाच्चुएसु तेवीसं सयाई। गेविजविमाणपुढवी बावीसं, अणुत्तरविमणापुढवी एक्कवीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं।
सोहम्मीसाणेसु णं भंते। कप्पेसु विमाणा के वइयं उड्ढे उच्चत्तेणं? गोयमा! पंचजोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं। सणंकुमार-माहिंदेसु छ जोयणसयाई, बंभलंतएसु सत्त, महासुक्कसहस्सारेसु अट्ठ, आणय-पाणयारणाच्चुएसुणव, गेवेन्जविमाणा णं भंते! केवइयं उड्ढे उच्चत्तेणं? गोयमा! दस जोयणसयाई। अणुत्तरविमाणा णं एक्कारस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं। . २०१. (अ) भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमानपृथ्वी कितनी मोटी है? गौतम! सत्ताईससौ योजन मोटी है। इसी प्रकार सबकी प्रश्न पृच्छा करनी चाहिए। सनत्कुमार और माहेन्द्र में विमानपृथ्वी छव्वीससौ योजन मोटी है । ब्रह्मलोक और लांतक में पच्चीससौ योजन मोटी है । महाशुक्र और सहस्रार में चौवीससौ योजन मोटी है । आणत प्राणत आरण और अच्युत कल्प में विमानपृथ्वी तेईससौ योजन मोटी है । ग्रैवेयकों में विमानपृथ्वी बाईससौ योजन मोटी है । अनुत्तर विमानों में विमानपृथ्वी इक्कीससौ योजन मोटी है।
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमान कितने ऊँचे हैं?
गौतम! पांच सौ योजन ऊंचे हैं । सनत्कुमार और माहेन्द्र में छहसौ योजन, ब्रह्मलोक और लान्तक में सातसौयोजन, महाशुक्र और सहस्रार में आठसौ योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत में नौ सो योजन, ग्रैवेयकविमान में दससौ योजन और अनुत्तरविमान ग्यारहसौ योजन ऊंचे कहे गये हैं।
२०१. (आ) सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा किंसंठिया पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आवलिया-पविट्ठा य बाहिरा य। तत्थ णं जे ते आवलियापविट्ठा ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-वट्टा, तंसा, चउरंसा। तत्थ णं जे आवलियाबाहिरा ते णं णाणासंठिया पण्णत्ता। एवं जाव गेवेन्जविमाणा। अणुत्तरोववाइयाविमाणा १. धणोदहिपइट्ठाणा सुरभवणा दोसु कप्पेसु । तिसु वायपइट्ठाणा तदुभय पइट्ठिया तिसु॥१॥ तेण परं उवरिमगा आगासंतर-पइट्ठिया सव्वे। एस पइट्ठाण विही उड्ढं लोए विमाणाणं ॥२॥