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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : परिषदों और स्थिति आदि का वर्णन ] [ १०१ पण्णत्ता। तहेव सव्वेसिं इंदाणं ठाणपदगमेणं विमाणाणि बुच्चा परिसाओ पत्तेयं पत्तेयं वुच्चइ | १९९ (इ) सनत्कुमार देवों के विमानों के विषय में प्रश्न करने पर कहा गया है कि प्रज्ञापना के स्थान पद के अनुसार कथन करना चाहिए यावत् वहां सनत्कुमार देवेन्द्र देवराज हैं। उसकी तीन पर्षदा हैं - समिता, चंडा और जाया । आभ्यन्तर परिषदा में आठ हजार, मध्य परिषदा में दस हजार और बाह्य परिषदा में बारह हजार देव हैं। आभ्यन्तर पर्षदा के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और पांच पल्योपम है, मध्यम पर्षदा के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और चार पल्योपम है, बाह्य पर्षदा देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और तीन पल्योपम की है । पर्षदों का अर्थ पूर्व चमरेन्द्र के प्रसंगानुसार जानना चाहिए । ( सनत्कुमार में और आगे के देवलोक में देवियां नहीं है। अतएव देवियों का कथन नहीं किया गया है।) इसी प्रकार माहेन्द्र देवलोक के विमानो और माहेन्द्र देवराज देवेन्द्र का कथन करना चाहिए । वैसी ही तीन पर्षदा कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि आभ्यन्तर पर्षदा में छह हजार, मध्य पर्षदा में आठ हजार और बाह्य पर्षदा में दस हजार देव हैं। आभ्यन्तर पर्षदा के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरीपम और सात पल्योपम की है। मध्य पर्षदा देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और छह पल्योपम की है और बाह्य पर्षदा के देवों की स्थिति साढ़े चार सागरोपम और पांच पल्योपम की है । इसी प्रकार स्थानपद के अनुसार पहले सब इन्द्रों के विमानों का कथन करने के पश्चात् प्रत्येक की पर्षदाओं का कथन करना चाहिए । १९९ (ई) बंभस्सवि तओ परिसाओ पण्णत्ताओ । अभितरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, मज्झमियाए छ देवसाहस्सीओ, बाहिरियाए अट्ठ देवसाहस्सीओ । देवाणं ठिई - अब्भितरियाए परिसाए अद्धणवमाई सागरोवमाई पंच य पलिओवमाई, मज्झिमियाए परिसाए अद्धनवमाइं सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाइं, बाहिरियाए परिसाए अद्धनवमाई सागरोवमाइं तिणि य पलिओवमाइं । अट्ठो सो चेव । लंतगस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अब्भितरियाए परिसाए दो देवसाहस्सीओ, मज्झमिया चत्तारि देवसाहस्सीओ, बाहिरियाए छ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । ठिई भाणियव्वा । अब्भितरियाए परिसाए बारस सागरोवमाइं सत्तपलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, मज्झमिया परिसाए बारस सागरोवमाइं छच्चपलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, बाहिरिया परिसाए बारस सागरोवमाई पंच पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । महासुक्कस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अब्भितरियाए एगं देवसहस्सं, मज्झिमियाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । अब्भितरियाए परिसाए अद्धसोलस सागरोवमाई पंच य पलिओवमाइं, मज्झिमियाए अद्धसोलस सागरोवमाइं
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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