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तिणि पलिओमाई पण्णत्ता । अट्ठो सो चेव ।
[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
सहस्सारे पुच्छा जाव अब्भितरियाए परिसाए पंच देवसया, मज्झिमिया परिसाए एगा देवसाहस्सी, बाहिरियाए परिसाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । ठिई - अब्भितरियाए परिसाए अद्धट्ठारस सागरोवमाइं सत्त पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, एवं मज्झिमिझाए अद्धट्ठारस सागरोवमा छ पलिओवमाइं, बाहिरियाए अट्ठारस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाई । अट्ठो सो चेव ।
१९९. (ई) ब्रह्म इन्द्र की भी तीन पर्षदाएं हैं। आभ्यन्तर परिषद् में चार हजार देव, मध्य परिषद् में छह हजार देव और बाह्य परिषद् में आठ हजार देव हैं। आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति साढे आठ सागरोपम और पांच पल्योपम है । मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति साढे आठ सागरोपम और चार पल्योपम की है। बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े आठ सागरोपम और तीन पल्योपम की है । परिषदों का अर्थ पूर्वोक्त ही है ।
लन्तक इन्द्र की भी तीन परिषद् हैं यावत् आभ्यन्त परिषद् में दो हजार देव, मध्यम परिषद् में चार हजार देव और बाह्य परिषद् में छह हजार देव हैं। आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और छह पल्योपम की, बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और पांच पल्योपम की है ।
महाशुक्र इन्द्र की भी तीन परिषद् हैं। आभ्यन्तर परिषद् में एक हजार देव, मध्यम परिषद् में दो हजार देव और बाह्य परिषद् में चार हजार देव हैं।
आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े पन्द्रह सागरोपम और पांच पल्योपम की है । मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े पन्द्रह सागरोपम और चार पल्योपम की और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े पन्द्रह सागरोपम और तीन पल्योपम की है। परिषदों का अर्थ पूर्ववत् कहना चाहिए ।
सहस्रार इन्द्र की आभ्यन्तर पर्षद में पांच सौ देव, मध्य पर्षद में एक हजार देव और बाह्य पर्षद में दो हजार देव हैं। आभ्यन्तर पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और सात पल्योपम की है, मध्यम पर्षद के देवों की स्थिति सत्रह सागरोपम और छह पल्योपम की है, बाह्य पर्षद के देवों की स्थिति साढ़े सत्रह सागरोपम और पंच पल्योपम की है ।
१९९. (उ) आणयपाणयस्सवि पुच्छा जाव तओ परिसाओ नवरं अभितरियाए अड्डाइज्जा देवसया, मज्झिमियाए पंच देवसया, बाहिरियाए एगा देवसाहस्सी । ठिईअभितरियाए एगूणवीसं सागरोवमाई पंच य पलिओवमाइं, एवं मज्झिमियाए एगूणवीसं सागरोवमाइं चत्तारि य पलिओवमाइं, बाहिरियाए परिसाए एगूणवीसं सागरोवमाइं तिण्णि पलिओमाई ठिई । अट्ठो सो चेव ।
कहि णं भंते! आरण-अच्चुयाणं देवाणं अच्चुए सपरिवारे जाव विहरइ । अच्चुयस्स