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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार ] [ ९५ अदुत्तरं च णं गोयमा ? पभू चंदे जोइसराया चंदवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्मा चंदंसि सीहासांसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोलसहिं आयरक्खदेवाणं साहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहिं जोइसिएहिं देवेहिं य सद्धिं संपरिवुडे हयणट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघण -मुइंग पडुप्पाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, केवलं परियारतुडिएण सद्धिं भोगभोगाई बुद्धिए नो चेव णं मेहुणवत्तियं । १९६. (आ) भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगोपभोग भोगने में समर्थ है क्या ? गौतम ! नहीं। वह समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान मे सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगोपभोग भोगने में समर्थ नहीं है? गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में माणवक चैत्यस्तंभ में वज्रमय गोल मंजूषाओं में बहुत-सी जिनदेव की अस्थियां रखी हुई हैं, जो ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र और अन्य बहुत-से ज्योतिषी देवों और देवियों के लिए अर्चनीय यावत् पर्युपासनीय हैं । उनके कारण ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में यावत् चन्द्रसिंहासन पर यावत् भोगोपभोग भोगने में समर्थ नहीं है । इसलिए ऐसा कहा गया है कि ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में चन्द्र सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगोपभोग भोगने में समर्थ नहीं है । गौतम ! दूसरी बात यह है कि ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में चन्द्र सिंहासन पर अपने चार हजार सामानिक देवों यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा अन्य बहुत से ज्योतिषी देवों और देवियों के साथ घिरा हुआ होकर जोर-जोर से बजाये गये नृत्य में, गीत में, वादित्रों के, तन्त्री के, तल के, ताल के, त्रुटित के, धन के, मृदंग के बजाये जाने से उत्पन्न शब्दों से दिव्य भोगोपभोगों को भोग सकने में समर्थ है। किन्तु अपने अन्तःपुर के साथ मैथुनबुद्धि से भोग भोगने में वह समर्थ नहीं है। १९६. (इ) सूरस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- सूरप्पभा, आयवाभा, अच्चिमाली, पभंकरा । एवं अवसेसं जहा चंदस्स णवरिं सूरवडिंसए विमाणे सूरंसि सीहासांसि तहेव सव्वेसिं गहाईणं चत्तारि अग्गमहिसीओ, तं जहा - विजया वेजयंती जयंती अपराइया तेसिं पि तहेव । १९६. (इ) भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज सूर्य की कितनी अग्रमहिषियां हैं ? गौतम ! चार अग्रमहिषियां हैं, जिनके नाम हैं- सूर्यप्रभा, आतपाभा, अर्चिमाली और प्रभंकरा । शेष वक्तव्यता चन्द्र के समान कहनी चाहिए । विशेषता यह है कि यहां सूर्यावतंसक विमान में
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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