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________________ [ जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा । एत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि देविसाहस्सीओ परिवारे य । पभू णं तओ एगमेगा देवी अण्णाइं चत्तारि चत्तारि देविसहस्साइं परिवारं विउवित्तए । एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देविसाहस्सीओ पण्णत्ताओ से तं तुडिए । , १९६. (अ) भगवन् ! जम्बूद्वीप में एक तारा का दूसरे तारे से कितना अन्तर कहा गया है ? गौतम ! अन्तर दो प्रकार का है, यथा- व्याघातिम (कृत्रिम) और निर्व्याघातिम (स्वाभाविक ) । व्याघातिम अन्तर जघन्य दो सौ छियासठ (२६६) योजन का और उत्कृष्ट बारह हजार दो सौ बयालीस (१२२४२) योजन का कहा गया है। जो निर्व्याघातिम अन्तर है वह जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट दो कोस का जानना चाहिए। (निषध व नीलवंत पर्वत के कूट ऊपर से २५० योजन लम्बे-चौड़े हैं। कूट की दोनों ओर से आठ-आठ योजन को छोड़कर तारामंडल चलता है, अतः २५० में १६ जोड़ देने से २६६ योजन का अन्तर निकल आता है। उत्कृष्ट अन्तर मेरु की अपेक्षा से है । मेरु की चौड़ाई दस हजार योजन की है और दोनों ओर के ११२१ योजन प्रदेश छोड़कर तारामण्डल चलता है। इस तरह १० हजार योजन में २२४२ मिलाने से उत्कृष्ट अन्तर आ जाता है ।) भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की कितनी अग्रमहिषियां हैं ? गौतम ! चार अग्रमहिषियां हैं, यथा- चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली और प्रभंकरा । इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी अन्य चार हजार देवियों की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार कुल मिलाकर सोलह हजार देवियों का परिवार हो जाता है। यह चन्द्रदेव के "तुटिक" अन्तःपुर का कथन हुआ । ९४] १९६. (आ) पभू णं भंते! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिंसर विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासंणसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? णो इणट्ठे समट्ठे । से कणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ नो पभू चंदे जोइसराया चंदवडें सए विमाणे सभाए सुम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? गोयमा ! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंदवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए माणवगंसि चेइयखंभंसि वइरामएस गोलवट्ट समुग्गएसु बहुयाओ जिणसक हाओ सणिक्खित्ताओ चिट्ठेति जाओ णं चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो अन्नेसिं च बहूणं जोइसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ । तासि पणिहाय नो पभू चंदे जोइसराया चंदवडिंसए जाव चंदंसि सीहासणंसि जाव भुंजमाणे विहरित्तए । से एएणट्ठेणं गोयमा ! नो पभू चंदे जोइसराया चंदवडेसए विमाणे जाव भुंजमाणे विहत्तिए । से एएट्ठेणं गोयमा ! नो पभू चंदे जोइसराया चंदवडें सए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासांसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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