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________________ ८४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि कोई तारादेव हीन भी हैं और कोई तारादेव बराबर भी हैं? गौतम! जैसे-जैसे उन तारा रूप देवों के पूर्वभव में किये हुए नियम और ब्रह्मचर्यादि में उत्कृष्टता या अनुत्कृष्टता होती है, उसी अनुपात में उनमें अणुत्व या तुल्यत्व होता है। इसलिए गौतम! ऐसा कहा जाता है कि चन्द्र-सूर्यों के नीचे, समश्रेणी में या ऊपर जो तारा रूपदेव हैं वे हीन भी हैं और बराबर भी हैं। प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में (८८) अठ्यासी ग्रह, अटावीस (२८) नक्षत्र होते हैं और ताराओं की संख्या छियासठ हजार नौ सौ पचहत्तर (६६९७५) कोडाकोडी होती है। १९२. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ केवइयं अबाहाए जोइसं चारं चरइ? गोयमा! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ; एवं दक्खिणिल्लाओ पच्चत्थिमिल्लाओ उत्तरिल्लाओ एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ। लोगंताओ णं भंते! केवइयं अबाहाए जोइसे पण्णत्ते? गोयमा! एक्कारसहिं एक्कारेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसे पण्णत्ते। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवइयं अबाहाए . सव्वहेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरइ? केवइयं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरइ? केवइयं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ? केवइयं अबाहाए सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभापुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तहिं णउएहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइस सव्वहेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरइ।अट्ठहिं जोयणसएहिं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरइ। अट्ठहिं असीएहिं जोयणसएहिं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ। नवहिं जोयणसएहिं अबाहाए सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ। सव्वहेद्विमिल्लाओ णं भंते! तारारूवाओ केवइयं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरइ? केवइयं चंदविमाणे चारं चरइ? केवइयं अबाहाए सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ? गोयमा! सव्वहेट्ठिल्लाओ णं दसहिं जोयणेहिं सूरविमाणे चारं चरइ। णउइए जोयणेहिं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ। दसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वोवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ। सूरविमाणाओ भंते! केवइयं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ? केवइयं सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ?
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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