________________
[८३
तृतीय प्रतिपत्ति : ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार ] को छद्यस्थ न देख सकता है और न जान सकता है । ऐसी सूक्ष्म ग्रन्थि वह होती है। ___भगवन! कोई महर्द्धिक देव (बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना) पहले बालक को छेदे-भेदे बिना बड़ा या छोटा करने में समर्थ है क्या?
गौतम! ऐसा नहीं हो सकता। इस प्रकार चारों भंग कहने चाहिए। प्रथम द्वितीय भंगों में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण नहीं है और प्रथम भंग में बाल-शरीर का छेदन-भेदन भी नहीं है। द्वितीय भंग में छेदन-भेदन है । तृतीय भंग में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण करना और बाल-शरीर का छेदन-भेदन करना नहीं है। चौथे भंग में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण भी है और पूर्व में बाल-शरीर का छेदन-भेदन भी है। ___इस छोटे-बड़े करने की सिद्धि को छद्मस्थ नहीं जान सकता और नहीं देख सकता। ह्रस्वीकरण और दीर्धीकरण की यह विधि बहुत सूक्ष्म होती है। ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार
१९१. अत्थि णं भंते! चंदिमसूरियाणं हिहिँपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि, समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि, उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि?
'हंता, अत्थि।
से केणढेणं भंते! एवं वुच्चइ-अत्थि णं चंदिमसूरियाणं जाव उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि, तुल्लावि?
गोयमा! जहा जहा णं तेसिं देवाणं तव-णियम-बंभचेर-वासाइं उक्कडाई उस्सियाई भवंति तहा तहा णं तेसिं देवाणं एवं पण्णायइ अणुत्ते वा तुल्ले वा। से एएणठेणं गोयमा! अत्थि णं चंदिमसूरियाणं उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि०। ए गमेगस्स णं चंदिम-सूरियस्स,
अट्ठासीइं च गहा, अट्ठावीसं च होइ नक्खत्ता। एक ससीपरिवारो एत्तो ताराणं वोच्छामि॥१॥ छावट्ठि सहस्साइं नव चेव सयाइं पंच सयराइं।
एक ससीपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं ॥२॥ १९१. भगवन् ! चन्द्र और सूर्यों के क्षेत्र की अपेक्षा नीचे रहे हुए जो तारा रूप देव हैं, वे क्या (द्युति, वैभव, लेश्या आदि की अपेक्षा) हीन भी हैं और बराबर भी हैं? चन्द्र-सूर्यों के क्षेत्र की समश्रेणी में रहे हुए तारा रूप देव, चन्द्र-सूर्यों से द्युति आदि में हीन भी हैं और बराबर भी हैं? तथा जो तारा रूप देव चन्द्र और सूर्यों के ऊपर अवस्थित है, वे द्युति आदि की अपेक्षा हीन भी हैं और बराबर भी है।
हां, गौतम! कोई हीन भी है और कोई बराबर भी हैं।