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[जीवाजीवाभिगमसूत्र ___इन बादर पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर, अवगाहना आदि द्वारों का विचार पूर्ववर्णित सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान कहना चाहिए। जो विशेषता और अन्तर है उस का उल्लेख यहाँ किया गया है। निम्न द्वारों में विशेषता जाननी चाहिए
लेश्याद्वार-सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों में तीन लेश्याएँ कही गई थीं। बादर पृथ्वीकायिकों में चार लेश्याएं जाननी चाहिए। उनमें तेजोलेश्या भी होती है। व्यन्तरदेवों से लेकर ईशान देवलोक तक के देव अपने भवन और विमानों में अति मूर्छा होने के कारण अपने रत्न कुण्डलादि में उत्पन्न होते हैं, वे तेजोलेश्या वाले भी होते हैं। आगम का वाक्य है कि 'जल्लेसे मरइ तल्लेसे उववजइ' जिस लेश्या में मरण होता है, उसी लेश्या में जन्म होता है। इसलिए थोड़े समय के लिए अपर्याप्त अवस्था में तेजोलेश्या भी उनमें पाई जाती हैं।
आहारद्वार-बादर पृथ्वीकायिक जीव नियम से छहों दिशाओं से आहार ग्रहण करते हैं। क्योंकि बादर जीव नियम से लोकमध्य में ही उत्पन्न होते हैं, किनारे नहीं। इसलिए व्याघात का प्रश्न ही नहीं रहता।
उपपातद्वार-देवों से आकर भी बादर पृथ्वीकायिक में जन्म होता है। इसलिए तिर्यच, मनुष्य और देवों से आकर बादर पृथ्वीकायिक में जन्म हो सकता है।
स्थिति-इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की है।
गति-आगतिद्वार-देवों से भी इनमें आना होता है इसलिए इनकी तीन गतियों से आगति है और दो गतियों में गति है।
इस प्रकार हे आयुष्मन् ! हे श्रमणो! ये बादर पृथ्वीकायिक जीव प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्य लोकाकाशप्रमाण कहे गये हैं। यह बादर पृथ्वीकाय का वर्णन हुआ इसके साथ ही पृथ्वीकाय का अधिकार पूर्ण हुआ। अपकाय का अधिकार
१६. से किं तं आउक्काइया ? आउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहुमआउक्काइया य बायरआउक्काइया य। सुहमआउक्काइया दुविहा पण्णत्ता. तं जहापज्जत्ता य अपजत्ता य। तेसिं णं भंते ! जीवाणं कति सरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता, तं जहाओरालिए, तेयए, कम्मए, जहेव सुहुम पुढविक्काइयाणं, णवरंथिबुगसंठिता पण्णत्ता, सेसं तं चेव जाव दुगतिया दुआगतिया परित्ता असंखेजा पण्णत्ता। से तं सुहुमआउक्काइया।