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________________ प्रथम प्रतिपत्ति: अप्काय का अधिकार ] [५१ [१६] अप्कायिक क्या हैं ? अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि सूक्ष्म अप्कायिक और बादर अप्कायिक। सूक्ष्म अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं, जैसे कि पर्याप्त और अपर्याप्त । भगवन्! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! उनके तीन शरीर कहे गये हैं, जैसे कि औदारिक, तैजस और कार्मण। इस प्रकार सब द्वारों की वक्तव्यता सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह कहना चाहिए। विशेषता यह है कि संस्थान द्वार में उनका स्तिबुक (बुदबुद रूप) संस्थान कहा गया है। शेष सब उसी तरह कहना यावत् वे दो गति वाले, दो आगति वाले हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात कहे गये हैं। यह सूक्ष्म अप्काय का अधिकार हुआ । बादर अप्कायिक १७. से किं तं बायरआउक्काइया ? बायरआउक्काइयाअणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा-ओसा, हिमे,जावजेयावन्ते तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपजत्ता य। तं चेव सव्वं णवरं थिबुगसंठिता, चत्तारि लेसाओ, आहारो नियमा छद्दिसिं, उववाओ तिरिक्खजोणिय मणुस्स देवेहिं, ठिई जहन्नेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसं सत्तवाससहस्साई; सेसं तं जहा बायरपुढविकाइया जाव। दुगतिया तिआगतिया परित्ता असंखेजा पन्नत्ता समणाउसो ! से तं बायरआउक्काइया, से तं आउक्काइया। [१७] बादर अप्कायिक का स्वरूप क्या है ? बादर अप्कायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-ओस, हिम यावत् अन्य भी इसी प्रकार के जल रूप। वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । इस प्रकार पूर्ववत् कहना चाहिए। विशेषता यह है कि उनका संस्थान स्तिबुक (बुदबुद) है। उनमें लेश्याएँ चार पाई जाती हैं, आहार नियम से छहों दिशाओं का, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देवों से उपपात, स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष जानना चाहिए। शेष बादर पृथ्वीकाय की तरह जानना चाहिए यावत् वे दो गति वाले, तीन आगति वाले हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात कह गये हैं। हे आयुष्मन् ! हे श्रमण ! यह बादर अप्कायिकों का कथन हुआ। इसके साथ ही अप्कायिकों का अधिकार पूरा हुआ। विवेचन-पृथ्वीकायिक जीवों के वर्णन के पश्चात् इन दो सूत्रों में अप्कायिक जीवों के संबंध में जानकारी दी गई है । अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं-सूक्ष्म अप्कायिक और बादर अप्कायिक।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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