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प्रथम प्रतिपत्ति :स्वरूप और प्रकार ]
४. अधर्मास्तिकाय-जीव और अजीव की स्थिति में सहायक होने वाला तत्त्व अधर्मास्तिकाय है। जैसे वृक्ष की छाया पथिक के लिए ठहरने में निमित्तकारण बनती है, इसी तरह अधर्मास्तिकाय जीव-पुद्गलों की स्थिति में सहायक होता है। यह भी स्थिति में सहायक है, प्रेरक नहीं। जो भी स्थितिरूप भाव हैं वे सब धर्मास्तिकाय के होने पर ही होते हैं। धर्मास्तिकाय की तरह यह भी एक अखण्ड अविभाज्य इकाई है। यह असंख्यातप्रदेशी और सर्वलोकव्यापी है।
५-६. अधर्मास्तिकाय का देश और प्रदेश-अधर्मास्तिकाय के तीन भेद हैं-स्कन्ध, देश और प्रदेश। सम्पूर्ण वस्तु को स्कध कहते हैं। द्विप्रदेशी आदि बुद्धिकल्पित विभाग को देश कहते हैं और वस्तु से मिले हुए सबसे छोटे अंश को-जिसका फिर भाग न हो सके-प्रदेश कहते है।
७-८-९. आकाशास्तिकाय के स्कन्ध, देश, प्रदेश-आकाश सर्वसम्मत अरूपी द्रव्य है। शाब्दिक व्युत्पत्ति के अनुसार जिसमें अन्य सब द्रव्य अपने स्वरूप को छोड़े बिना प्रकाशित-प्रतिभासित होते हैं, वह आकाश है अथवा जो सब पदार्थों में अभिव्याप्त होकर प्रकाशित होता रहता है, वह आकाश है। अवगाह प्रदान करना-स्थान देना आकाश का लक्षण है । जैसे दूध शक्कर को अवगाह देता है, भींत खूटी को स्थान देती है।
आकाश द्रव्य सब द्रव्यों का आधार है। अन्य सब द्रव्य इसके आधेय हैं। यद्यपि निश्चयनय की दृष्टि से सब द्रव्य स्वप्रतिष्ठ हैं-अपने-अपने स्वरूप में स्थित हैं किन्तु व्यवहारनय की दृष्टि से आकाश सब द्रव्यों का आधार है। प्रश्न हो सकता है कि जब आकाश सब द्रव्यों का आधार है तो आकाश का आधार क्या है ? इसका उत्तर यह है कि आकाश स्वप्रतिष्ठित है। वह किसी दूसरे द्रव्य के आधार पर नहीं है। आकाश से बड़ा या उसके सदृश और कोई द्रव्य है ही नहीं।
आकाश अनन्त है। वह सर्वव्यापक-लोकालोक व्यापी है। स्थूल दृष्टि से आकाश के दो भेद हैंलोकाकाश और अलोकाकाश। जिस आकाश खण्ड में धर्म-अधर्म-आकाश-पुद्गल और जीवरूप पंचास्तिकाय विद्यमान हैं वह लोकाकाश है। लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं। जहाँ आकाश ही आकाश है और कुछ नहीं, वह अलोकाकाश है। वह अनन्त प्रदेशात्मक है। असीम और अनन्त है। अलोकाकाश के महासिन्धु में लोकाकाश बिन्दुमात्र है।
सम्पूर्ण आकाश आकाशास्तिकाय का स्कन्ध है। बुद्धिकल्पित उसका अंश आकाशस्तिकाय का देश है। आकाशद्रव्य के अविभाज्य निरंश अंश आकाशस्तिकाय के प्रदेश हैं।
१०. अद्धा-समय-अद्धा का अर्थ होता है-काल। वह समयादि रूप होने से अद्धा-समय कहा जाता है। अथवा काल का जो सूक्ष्मतम निर्विभाग भाग है वह अद्धासमय है। यह एक समय ही, जो वर्त १. अहम्मो ठिइलक्खणो। २. आ-समन्तत् सर्वाण्यपि द्रव्याणि काशन्ते-दीप्यन्तेऽत्र व्यवस्थितानीत्याकाशम्। ३. आकाशस्यावगाहः। -तत्त्वार्थसूत्र अ.५ सू. १८ ४. अद्धति कालस्याख्या, अद्धा चासौ समयः अद्धासमयः, अथवा अद्धाया समयो निर्विभागो भागोद्धासमयः।