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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :जंबूद्वीप क्यों कहलाता हैं ?] [४४५ वनखंड और तृतीय वनखंड। जंबूसुदर्शना के पूर्वीय प्रथम वनखण्ड में पचास योजन आगे जाने पर एक विशाल भवन है; पूर्व के भवन के समान ही शयनीय पर्यन्त सब वर्णन जान लेना चाहिए। इसी प्रकार दक्षिण में, पश्चिम में और उत्तर में भी भवन समझने चाहिए। जम्बूसुदर्शना के उत्तरपूर्व के प्रथम वनखंड में पचास योजन आगे जाने पर चार नंदापुष्करिणियां कही गई हैं, उनके नाम हैं-पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा और कुमुदप्रभा। वे नंदापुष्करिणियां एक कोस लम्बी, आधा कोस चौड़ी, पांच सौ धनुष गहरी हैं। वे स्वच्छ, श्लक्ष्ण, धृष्ट, मृष्ट, निष्पंक, नीरजस्क हैं यावत् प्रतिरूप हैं, इत्यादि वर्णनक तोरण पर्यन्त कहना चाहिए। ___उन नंदापुष्करिणियों के बहुमध्यदेशभाग में प्रासादावतंसक कहा गया है जो एक कोस ऊँचा है, आधा कोस का चौड़ा है, इत्यादि वही वर्णनक सपरिवार सिंहासन तक कहना चाहिए। ___ इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व में भी पचास योजन जाने पर चार नंदापुष्करिणियां हैं, यथा-उत्पल-गुल्मा, नलिना, उत्पला, उत्पलोज्ज्वला। उनका प्रमाण, प्रासादावतंसक और उसका प्रमाण पूर्ववत् है। इसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम में भी पचास योजन आगे जाने पर चार पुष्करिणियां हैं, यथा-भुंगा, ,गिनिया, अंजना एवं कज्जलप्रभा। शेष सब पूर्ववत् । जम्बूसुदर्शनी के उत्तर-पूर्व में प्रथम वनखंड में पचास योजन आगे जाने पर चार नंदापुष्करिणियां हैं, उनके नाम हैं-श्रीकान्ता, श्रीमहिता, श्रीचंद्रा और श्रीनिलया। वही प्रमाण और प्रासादावतंसक तथा उसका प्रमाण भी वही है। १५२. [३] जंबूए णं सुदंसणाए पुरथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमस्स पासायवडेंसगस्स दाहिणेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते अट्ट जोयणाई उड्डूं उच्चत्तेणं मूले बारस जोयणाइं विक्खंभेणंमाझे अट्ठजोयणाइं(आयाम)विक्खंभेण उवरिंचत्तारिजोयणाई(आयाम) विक्खंभेणं मूले साइरेगाई सत्ततीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मझे साइरेगाइं पणुवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं उवरिं साइरेगाइं बारसजोयणाइं परिक्खेवेणं मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पिं तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे।सेणंएगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते; दोण्हवि वण्णओ। तस्स णं कूडस्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंतिः। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एगं सिद्धायतणं कोसप्पमाणं सव्वा १. वृत्ति के अनुसार इनके नामों का क्रम इस प्रकार है श्रीकान्ता, श्रीचन्द्रा श्रीनिलया और श्रीमहिता। उक्तं चपउमा पउमप्पभा चेव कुमुया कुमुयप्पभा। उप्पलगुम्मा नलिणा उप्पला उप्पलुज्जला ॥१॥ भिंगा भिंगनिभा चेव अंजण्ण कज्जलप्पभा। सिरिकंता सिरिचंदा सिरिनिलया सिरिमहिया॥२॥
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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