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________________ ४४४ ] भाणियव्वो जंबूए जाव आयरक्खाणं । जंबू णं सुंदसणा तिहिं जोयणसइएहिं वणसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, तं जहापढमेणं दोच्चेणं तच्चेणं । जंबूए णं सुदंसणाए पुरत्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता एत्थ णं एगे महं भवणं पण्णत्ते, पुरत्थिमिल्ले भवणसरिसे भाणियव्वे जाव सयणिज्जं । एवं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं । [जीवाजीवाभिगमसूत्र जंबू ण सुदंसणा उत्तरपुरत्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता चत्तारि नंदापुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पउमा पउमप्पभा चेव कुमुदा कुमयप्पभा । ताओ णं णंदापुक्खरिणीओ कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं पंचधणुसयाई उव्वेहेणं अच्छाओ सहाओ लहाओ घट्टाओ मट्ठाओ णिप्पंकाओ णीरयाओ जाव पडिरूवाओ। वण्णओ भाणियव्वो जाव तोरणत्ति । तासिं णं णंदापुक्खरिणीणं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं पासायवडेंसए पण्णत्ते कोसप्पमाणे अद्धकोसं विक्खंभो सो चेव वण्णओ जाव सीहासणं सपरिवारं । एवं दक्खिण- पुरत्थिमेण वि पण्णासं जोयणाई ओगहित्ता चत्तारि णंदापुक्खरिणीओ उप्पलगुम्मा, नलिणा उप्पला, उप्पलुज्जला, तं चेव पमाणं तहेव पासायवडेंसगो तप्पमाणो । एवं दक्खिण-पच्चत्थिमेण वि पण्णासं जोयणाणं नवरं भिंगा भिंगाणिमा चेव अंजणा कज्जलप्पभा । सेसं तं चेव । जंबू णं सुदंसणा उत्तरपुरत्थिमे पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता एत्थ णं चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - सिरिकंता सिरिमहिया सिरिचंदा चेव तह य सिरिणिलया । तं चेव पमाणं तहेव पासायवडिंसओ । [१५२] (२) यह सुदर्शना जम्बू मूल में बारह पद्मवरवेदिकाओं से चारों ओर से घिरी हुई है। वे पद्मवरवेदिकाएँ आधा योजन ऊँची, पांच सौ धनुष चौड़ी हैं। यहाँ पद्मवरवेदिका का वर्णनक कहना चाहिए । यह जम्बूसुदर्शना एक सौ आठ अन्य उससे आधी ऊँचाई वाली जंबुओं से चारों ओर घिरी हुई है । जम्बू चार योजन ऊँची, एक कोस जमीन में गहर हैं, एक योजन का उनका स्कन्ध, एक योजन का विष्कंभ है, तीन योजन तक फैली हुई शाखाएँ हैं। उनका मध्यभाग में चार योजन का विष्कंभ है और चार योजन से अधिक उनकी समग्र ऊँचाई है। वज्रमय उनके मूल हैं, आदि चैत्यवृक्ष का वर्णनक यहाँ कहना चाहिए । जम्बूसुदर्शना के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में और उत्तरपूर्व में अनाहत देव के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार जम्बू हैं। जम्बूसुदर्शना के पूर्व में अनाहत देव की चार अग्रमहिषियों के चार जम्बू हैं । इस प्रकार समस्त परिवार यावत् आत्मरक्षकों के जंबुओं का कथन करना चाहिए । जंबूसुदर्शना सौ-सौ योजन के तीन वनखण्डों से चारों ओर घिरी हुई है, यथा- प्रथम वनखंड, द्वितीय
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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