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तृतीय प्रतिपत्ति :जंबूवृक्ष वक्तव्यता]
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तस्सणंजंबूपेढस्स उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागेपण्णत्ते से जहाणामए आलिंगपुक्खरे इ वा जाव मणीणं फासो। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं मणिमई अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा। तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं एत्थ णं महं जंबूसुदंसणा पण्णत्ता अट्ठजोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं अद्धजोयणं उव्वेहेणं दो जोयणाइं खंधे अट्ठजोयणाई विक्खंभेणं छजोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणाइविक्खंभेणं साइरेगाइं अट्ठजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता; वइरामयमूला रययसुपइट्ठियविडिमा एवं चेइयरुक्खवण्णओ सव्वो जाव रिट्ठामयविउलकंदा, वेरुलियरुइरक्खंधा सुजायवरजायरुवपढमगविसालसाला नाणामणिरयणविविहसाहप्पसाहवेरुलियपत्ततवणिज्जपत्तविंटा जंबूणयरत्तमउयसुकुमालपवालपल्लवंकुरधरा विचित्तमणिरयणसुरहिकुसुमा फलभारनमियसाला सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया अहियं मणोनिव्वुइकरा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
__[१५१] हे भगवन् ! उत्तरकुरु क्षेत्र में सुदर्शना अपर नाम जम्बू का जम्बूपीठ नाम का पीठ कहाँ कहा गया है।
__ हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तरपूर्व (ईशानकोण) में, नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के पूर्वीय किनारे पर उत्तरकुरु क्षेत्र का जम्बूद्वीप नामक पीठ है जो पांच सौ योजन लम्बा चौड़ा है, पन्द्रह सौ इक सी योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है। वह मध्यभाग में बारह योजन की मोटाई वाला है, उसके बाद क्रमशः प्रदेशहानि होने से थोड़ा थोड़ा कम होता होता सब चरमान्तों में दो कोस का मोटा रह जाता है। वह सर्व जम्बूनद (स्वर्ण) मय है, स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है।
वह जम्बूपीठ एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। उस जम्बूपीठ की चारों दिशाओं में चार त्रिसोपानप्रतिरूपक कहे गये हैं आदि सब वर्णन पूर्ववत् करना चाहिए। तोरणों का यावत् छत्रातिछत्रों का कथन करना चाहिए।
उस जम्बूपीठ के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है जो आलिंगपुष्कर (मुरज-मृदंग) के मढ़े हुए चमड़े के समान समतल है, आदि कथन मणियों के स्पर्श पर्यन्त पूर्ववत् जानना चाहिए। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्यभाग में एक विशाल मणिपीठिका कही गई है जो आठ योजन की लम्बी-चौड़ी और चार योजन की मोटी है, मणिमय है, स्वच्छ है, श्लक्ष्ण है यावत् प्रतिरूप है । उस मणिपीठिका के ऊपर विशाल जम्बू सुदर्शना (सुदर्शना अपर नाम जम्बू) है-जम्बूवृक्ष है। वह जम्बूवृक्ष आठ योजन ऊँचा है, आधा योजन जमीन में है, दो योजन का उसका स्कंध (धड़) है, आठ योजन उसकी चौड़ाई है, छह योजन तक उसकी शाखाएँ फैली हुई हैं, मध्यभाग में आठ योजन चौड़ा है, (उद्वेध और बाहर की ऊँचाई) मिलाकर आठ योजन से अधिक (साढे आठ योजन) ऊँचा है। इसके मूल वज्ररत्न के हैं, इसकी शाखाएँ रजत (चांदी) की हैं और ऊँची निकली हुई हैं, इस प्रकार चैत्यवृक्ष का वर्णनक कहना चाहिए यावत् उसके कन्द विपुल