SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४२] [जीवाजीवाभिगमसूत्र और रिष्टरत्नों के हैं, उसके स्कंध रुचिर (सुन्दर) और वैडूर्यरत्न के हैं, इसकी मूलभूत शाखाएँ सुन्दर श्रेष्ठ चांदी की हैं, अनेक प्रकार के रत्नों और मणियों से इसकी शाखा-प्रशाखाएं बनी हुई हैं, वैडूर्यरत्नों के पत्ते हैं और तपनीय स्वर्ण के इसके पत्रवृन्त (वींट) हैं, इसके प्रवाल और पल्लवांकुर जम्बूनद नामक स्वर्ण के हैं, लाल हैं, सुकोमल हैं और मृदुस्पर्श वाले हैं। ' नानाप्रकार के मणिरत्नों के फूल हैं। वे फूल सुगन्धित हैं। उसकी शाखाएँ फल के भार से नमी हुई हैं। वह जम्बूवृक्ष सुन्दर छाया वाला, सुन्दर कान्ति वाला, शोभा वाला, उद्योत वाला और मन को अत्यन्त तृप्ति देने वाला है। वह प्रासादीय है, दर्शनीय है, अभिरूप है और प्रतिरूप है। १५२.[१]जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसिंचत्तारि साला पण्णत्ता,तं जहा-पुरस्थिमेणं दक्खिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। तत्थ णं जे से पुरथिमिल्ले साले एत्थ णं एगे महं भवणे पण्णत्ते, एगं कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्डे उच्चत्तेणं अणेगखंभसयसण्णिविटेवण्णओ जाव भवणस्सदारंतंचेव पमाणं पंचधणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं अड्डाइज्जाइंधणुसयाई विक्खंभेणं जाव वणमालाओ भूमिभागा उल्लोया मणिपेढिया पंचधणुसइया देवसयाणिज्जं भाणियव्वं। __ तत्थ णं जे से दाहिणिल्ले साले एत्थ णं एगे महं पासायवडेंसए पण्णत्ते, कोसं च उड्ढे उच्चत्तेणं अद्धकोसं आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय० अंतो बहुसम० उल्लोया। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं। तत्थणंजे से पच्चथिमिल्ले साले एत्थणं पासायवडेंसए पण्णत्तेतंचेव पमाणंसीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं। तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले साले एत्थ णं एगे महं पासायवडेंसए पण्णत्ते तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं। तत्थ णं जे से उवरिमविडिमे एत्थ णं एगे महं सिद्धायतणे कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उ8 उच्चत्तेणं अणेगखंभसयसन्निविटे वण्णओ। तिदिसिं तओ दारा पंचधणुसया अड्डाइज्जधणुसयविक्खंभा मणिपेढिया पंचधणुसइया देवच्छंदओ पंचधणुसयाई आयामविक्खंभेणं साइरेगपंचधणुसयाइमुच्चत्तेणं। तत्थ णं देवच्छंदए अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणस्सेहपमाणाणं, एवं सव्वा सिद्धायतण वत्तव्वया भाणियव्वा जाव धूवकडुच्छाया उत्तिमागारा सोलसविहेहिं रयणेहिं उवेए चेव। १. वृत्तिकार ने मतान्तर का उल्लेख करते हुए लिखा है-'अपरे सौवर्णिक्यो मूलशाखाः प्रशाखा रजतमय्यः इत्युचुः।' अन्ये तु जम्बूनदमया अग्रप्रवाला अंकुरापरपर्याया राजता इत्याहु । इस विषयक संग्रहणी गाथाएं इस प्रकार हैंमूला वइरमया से कंदो खंधो य रिट्ठवेरुलिओ। सोवण्णियसाहप्पसाह तह जायरूवा य ॥१॥ विडिमा रयय वेरुलिय पत्त तवणिज्ज पत्तविंटा य। पल्लव अग्गपवाला जम्बूणय रायया तीसे ॥२॥
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy