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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :जंबूद्वीप क्यों कहलाता हैं ?] [४३३ की जघन्य स्थिति और परिपूर्ण तीन पल्योपम की उत्कृष्ट आयु है और ४९ दिन तक अपत्य-पालना करते हैं। शेष एकोरुक द्वीप के मनुष्यो की वक्तव्यतानुसार जानना चाहिए यावत् वे मनुष्य मर कर देवलोक में ही जाते हैं। उत्तरकुरुओं में जातिभेद को लेकर छह प्रकार के मनुष्य रहते हैं-१. पद्मगंध (पद्म जैसी गंध वाले), २. मृगगन्ध (मृग जैसी गंध वाले), ३. अमम (ममत्वहीन), ४. सह (सहनशील), ५. तेयालीसे (तेजस्वी) और ६. शनैश्चारी (धीरे चलने वाले)। वृत्ति के अनुसार उत्तरकुरु क्षेत्र को लेकर जो-जो विषय कहे गये हैं, उनको संकलित करने वाली तीन गाथाएँ इस प्रकार हैं उसुजीवाधणपढे भूमी गुम्मा य हेरुउद्दाला। तिलगलावणराई रुक्खा मणुया य आहारे।। १॥ गेहा गामा य असी हिरण्णराया य दास माया य। अरिवेरिए य मित्ते विवाह मह नट्ट सगडा य ॥ २॥ आसा गावो सीहा साली खाणू य गड्डदंसाही । गहजुद्ध रोगठिइ उव्वट्टणा य अणुसज्जणा चेव ॥ ३॥ उक्त गाथाओं का भावार्थ इस प्रकार है सबसे प्रथम उत्तरकुरु के विषय में इषु, जीवा और धनुपृष्ठ का प्रतिपादन है। फिर भूमि विषयक कथन है, तदनन्तर गुल्म का वर्णन, तदनन्तर हेरुताल आदि वनों का वर्णन, फिर उद्दाल आदि द्रुमों का वर्णन, फिर तिलक आदि वक्षों का, लताओं का और वनराजि का वर्णन है। इसके बाद १० प्रकार के कल्पवृक्षों का वर्णन है, इसके बाद वहाँ के मनुष्यों, स्त्रियों और स्त्री-पुरुष दोनों का सम्मिलित वर्णन है। इसके बाद आहार.विषयक सूत्र है। इसके बाद गृहाकार वृक्षों का वर्णन है। इसके पश्चात् गृह, ग्राम, असि (शस्त्रादि), हिरण्य, राजा, दास, माता, अरि-वैरी, मित्र, विवाह, उत्सव, नृत्य, शकट (गाडी आदि सवारी) का वहाँ अभाव है, ऐसा कहा गया है। तदनन्तर घोड़े, गाय, सिंह, आदि पशुओं का अस्तित्व तो है परन्तु मनुष्यों के परिभोग में आने वाले या उन्हें बाधा पहुंचाने वाले नहीं हैं। इसके बाद शालि आदि के उपभोग के प्रतिषेधक सूत्र हैं, स्थाणु आदि के प्रतिषेधक सूत्र हैं, गर्त-डांस-मच्छर आदि के प्रतिषेधक सूत्र हैं, तदनन्तर सर्पादि हैं परन्तु बाधा देने वाले नहीं हैं ऐसा कथन किया गया है। तदनन्तर ग्रहों सम्बन्धी अनर्थ के अभाव, युद्धों के अभाव और रोगों के अभाव का कथन किया गया है। इसके बाद स्थिति, उद्वर्तना और अनुषजन (उत्पत्ति) का कथन किया गया है। १४८. कहिं णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जमगा नाम दुवे पव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! नीलवंतस्स वासहरपब्वयस्स दाहिणेणं अट्ठचोत्तीसे जोयणसए चत्तारि यसत्त भागे जोयणस्स अबाहाए सीताए महाणईए (पुष्व-पच्छिमेणं) उभओ कूले एत्थ णं उत्तरकुराए जमगाणामंदुवे पव्वया पण्णता, एगमेगंजोयणसहस्सं उड्डे उच्चत्तेणं अड्डाइग्जाइंजोयणसयाणि
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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