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________________ ४३४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र उव्वेहेणं, मूले एगमेगंजोयणसहस्संआयामविक्खंभेणं मज्झे अद्धट्ठमाइंजोयणसयाई आयामविक्खंभेणं, उवरिं पंचजोयणसयाइं आयाम-विक्खंभेणं; मूले तिण्णि जोयणसहस्साइं एगंच बावढि जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं, मज्झे दो जोयणसहस्साइं तिण्णिय बावत्तरे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते, उवरिं पन्नरसं एक्कासीए जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते।मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पिंतणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्वकणगमया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा। पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता, पत्तेयं पत्तेयं वणसंड परिक्खित्ता, वण्णओ दोण्ह वि। तेसिं णं जमगपव्वयाणं उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, वण्णओ जाव आसयंति०। तेसिंणं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता।तेणंपासायवडेंसगा बावटुिंजोयणाइं अद्धजोयणंच उड़े उच्चत्तेणं एकत्तीसंजोयणाई कोसंयविक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिआवण्णओ।भूमिभागा उल्लोया दो जोयणाई मणिपेढियाओ वरसीहासणा सपरिवारा जाव जमगा चिटुंति। से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जमगा पव्वया जमगा पव्वया ? .. ___ गोयमा ! जमगेसु पव्वएसु तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव बिलपंतियासु, तासु णं खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूइं उप्पलाइं जाव सयसहस्सपत्ताई जमगप्पमाइं जमगवण्णाइं, जमगा य एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्रिईया परिवसंति। तेणं तत्थ पत्तेयं पत्तेयं चउण्हं सामाणियसहस्सीणंजाव जमगाणं पव्वयाणंजमगाण य रायधाणीणंअण्णेसिंच बहूणं वाणमंतराणं देवाण यदेवीण य आहेवच्चं जाव पालेमाणा विहरंति।से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जमग पव्वया जमग पव्वया ! अदुत्तरं च णं गोयमा ! जाव णिच्चा। कहिं णं भंते ! जमगाणं देवाणं जमगाओ णाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जमगाणं पव्वयाणं उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता अण्णम्मि जंबुद्दीवे दीवबारसजोयणसहस्साइंओगाहित्ता एत्थणंजमगाणं देवाणंजमगाओणाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ बारस जोयणसहस्साओ जहा विजयस्स जाव महिड्डिया जमगा देवा जमगा देवा। [१४८] हे भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में यमक नामक दो पर्वत कहाँ पर कहे गये हैं ? गौतम ! नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में आठ सौ चौतीस योजन और एक योजन के / भाग आने पर शीता नामक महानदी के पूर्व-पश्चिम के दोनों किनारों पर उत्तरकुरु क्षेत्र में दो यमक नाम के पर्वत कहे गये हैं। ये एक-एक हजार योजन ऊँचे हैं, २५० योजन जमीन में हैं, मूल में एक-एक हजार योजन लम्बे-चौड़े हैं, मध्य में साढे सात सौ योजन लम्बे-चौड़े हैं और ऊपर पांच सौ योजन आयाम-विष्कंभ वाले
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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