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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :जंबूद्वीप क्यों कहलाता हैं ?] [४३१ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पच्चथिमिल्लेणं कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, तेवण्णं जोयणसहस्साई आयामेणं, तीसे धणुपुटुं दाहिणेणं सटुिं जोयणसहस्साइंचत्तारि य अट्ठारसुत्तरे दुवालस य एगूण वीसइ भाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ते। उत्तरकुराए णं भंते कुराए केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते। से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव एक्कोरुयदीववत्तव्वया जाव देवलोगपरिग्गहा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! णवरि इमं णाणतं ___छधणुसहस्समूसिया दो छप्पन्ना पिट्ठकरंडसया अट्ठमभत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ,तिण्णि पलिओवमाई देसूणाई पलिओवमस्सासंखिज्जइ भागेणं ऊणगाइं जहन्नेणं, तिन्नि पलिओवमाइं उक्कोसेणं, एकूणपणराइंदियाइं अणुपालणा; सेसं जहा एगूरुयाणं। उत्तरकुराए णं कुराए छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जति,तं जहा–१. पम्हगंधा, २.मियगंधा, ३. अममा, ४. सहा, ५. तेयालीसे, ६. सणिचारी। [१४७] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में उत्तरकुरा नामक कुरा (क्षेत्र) है। वह पूर्व से पश्चिम तक लम्बा और उत्तर से दक्षिण तक चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध गोलाकार है। इसका विष्कंभ (विस्तार-चौड़ाई) ग्यारह हजार आठ सौ बयालीस योजन और एक योजन का २/.. भाग (११८४२ २४. योजन) है। इसकी जीवा पूर्व-पश्चिम तक लम्बी है। और दोनों ओर से वक्षस्कार पर्वतों को छूती है। पूर्वदिशा के छोर से पूर्वदिशा के वक्षस्कार पर्वत को और पश्चिमदिशा के छोर से पश्चिमदिशा के वक्षस्कार पर्वत को छूती है। यह जीवा तिरेपन हजार (५३०००) योजन लम्बी है। इस उत्तरकुरा का धनुष्पृष्ठ दक्षिण दिशा में साठ हजार चार सौ अठारह योजन और १२), योजन (६०४१८ १२/.. योजन) है। यह धनुष्पृष्ठ परिधि रूप है। हे भगवन् ! उत्तरकुरा का आकारभाव-प्रत्यवतार (स्वरूप) कैसा कहा गया है ? गौतम ! उत्तरकुरा का भूमिभाग बहुत सम और रमणीय है। वह भूमिभाग आलिंगपुष्कर (मुरजमृदंग) के मढ़े हुए चमड़े के समान समतल है-इत्यादि सब वर्णन एकोरुक द्वीप की वक्तव्यता के अनुसार कहना चाहिए यावत् हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य मर कर देवलोक में उत्पन्न होते हैं। अन्तर इतना है कि इनकी ऊँचाई छह हजार धनुष (तीन कोस) की होती है। दो सौ छप्पन इनकी पसलियाँ होती हैं। तीन दिन के बाद इन्हें आहार की इच्छा होती है। इनकी जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग कमदेशोन तीन पल्योपम की है और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की है। ये ४९ दिन तक अपत्य की अनुपालना करते हैं। शेष एकोरुक मनुष्यों के समान जानना चाहिए। उत्तरकुरा क्षेत्र में छह प्रकार के मनुष्य पैदा होते हैं, यथा-१. पद्मगंध, २. मृगगंध, ३. अमम, ४.
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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