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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
[१४६] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं क्या ? हाँ, गौतम ! स्पृष्ट हैं। भगवन् ! वे स्पष्ट प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप रूप हैं, लवणसमुद्र रूप नहीं हैं। हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश जम्बूद्वीप के छुए हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! छुए हुए हैं। हे भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश लवणसमुद्र रूप हैं या जम्बूद्वीप रूप ? गौतम ! वे स्पृष्ट प्रदेश लवणसमुद्र रूप हैं, जम्बूद्वीप रूप नहीं । हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में मर कर जीव लवणसमुद्र में पैदा होते हैं क्या ? गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं, कोई उत्पन्न नहीं होते हैं। हे भगवन् ! लवणसमुद्र में मर कर जीव जम्बूद्वीप में पैदा होते हैं क्या ? गौतम ! कोई पैदा होते हैं, कोई पैदा नहीं होते हैं।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में प्रश्न किया गया है कि जम्बूद्वीप के लवणसमुद्र से स्पृष्ट-छुए हुए प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप? इसका आशय यह है कि स्वसीमागत जो चरम प्रदेश हैं वे क्या जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप? क्योंकि जो जिससे स्पृष्ट होता है वह किसी अपेक्षा से उस रूप में व्यपदेश वाला हो जाता हैं, जैसे सौराष्ट्र से संक्रान्त मगध देश सौराष्ट्र कहलाता है। किसी अपेक्षा से वैसा व्यपदेश नहीं भी होता है, जैसे तर्जनी अंगुलि से संस्पृष्ट ज्येष्ठा अंगुलि तर्जनी नहीं कही जाती है। दोनों प्रकार की स्थितियाँ होने से यहाँ उक्त प्रकार का प्रश्न किया गया है। इसके उत्तर में प्रभु ने फरमाया कि वे जम्बूद्वीप के चरम स्पृष्ट प्रदेश जम्बूद्वीप के ही हैं, लवणसमुद्र के नहीं । यही बात लवणसमुद्र के प्रदेशों के विषय में भी समझनी चाहिए।
जम्बूद्वीप से मर कर लवणसमुद्र में पैदा होने और लवणसमुद्र से मर कर जम्बूद्वीप में पैदा होने संबंधी प्रश्रों के विषय में कहा गया है कि कोई-कोई जीव वहाँ पैदा होते हैं और कोई-कोई पैदा नहीं होते, क्योंकि जीव अपने किये हुए विविध कर्मों के कारण विविध गतियों में जाते हैं। जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? ।
१४७. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीवे दीवे ?
गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं णीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्ययस्स पच्चत्थिमेणं, गंधमायणस्स वक्खारपव्ययस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा णामंकुरा पण्णत्ता, पाईणपडीणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया एक्कारसजोयणसहस्साइं अट्ठबायाले जोयणसए दोण्णि य एकोणवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा पाईणपडीणायता दुहओ वक्खारपव्ययं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं