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ततीय प्रतिपत्ति: वैजयंत आदि द्वार]
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गोयमा ! अउणासिइंजोयणसहस्सााइंबावण्णं यजोयणाइंदेसूणंच अद्धजोयणंदारस्स य दारस्स य अबाहए अंतरे पण्णत्ते।
[१४५] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के इन द्वारों में एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कितना कहा गया है ?
गौतम ! उन्यासी हजार बावन योजन और देशोन आधा योजन का अन्तर कहा गया है। [७९०५२ योजन और देशोन आधा योजन]।
विवेचन-एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर उन्यासी हजार बावन योजन और देशोन आधा योजन बताया है, उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया गया है
प्रत्येक द्वार की शाखारूप कुड्य (भीत) एक एक कोस की मोटी है और प्रत्येक द्वार का विस्तार चार-चार योजन का है। इस तरह चारों द्वारों में कुड्य और द्वारप्रमाण १८ योजन का होता है। जम्बूद्वीप की परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस (३१६२२७) योजन तीन कोस एक सौ आठ धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इसमें से चारों द्वारों और शाखाद्वारों का १८ योजन प्रमाण घटाने पर परिधि का प्रमाण ३१६२०९ योजन तीन कोस एक सौ आठ धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से अधिक शेष रहता है। इसके चार भाग करने पर ७९०५२ योजन १ कोस १५३२ धनुष ३ अंगुल और ३ यव आता है। इतना एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर समझना चाहिए। इसी बात को निम्न दो गाथाओं में प्रकट किया गया है
कुड्डुदुवारपमाणं अट्ठारस जोयणाइं परिहीए। सो हि य चउहि विभत्तं इणमो दारंतरं होइ ॥ १॥ अउन्नसीई सहस्सा बावण्णा अद्धजोयणं नूणं।
दारस्स य दारस्स य अंतरमेयं विणिद्दिढें ॥२॥ १४६. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पएसा लवणं समुहं पुट्ठा ? हंता, पुट्ठा। ते णं भंते ! किं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे वा? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु ते लवणसमुहे। लवणस्स णं भंते ! समुहस्स पएसा जंबुद्दीदं दीवं पुट्ठा? हंता, पुट्ठा। ते णं भंते ! किं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवे दीवे वा ? गोयमा ! लवणे णं ते समुद्दे, नो खलु ते जंबुद्दीवे दीवे॥ जंबुद्दीवे ण भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता लवणसमुद्दे पच्चायति ? गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायंति। लवणे णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता जम्बुद्दीवे दीवे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्यंगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायंति।