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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
कहिं णं भंते ! ० रायहाणी ? दाहिणेणं जाव वेजयंते देवे देवे ।
कहिं णं भंते ! • जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं जंबुद्दीवपच्चत्थिमपेरंते लवणसमुद्दपच्चत्थिमद्धस्स पुरच्छिमेणं सीओदाए महाणईए उप्पिं एत्थ णं जम्बुद्दीवस्स जयंते णामं दारे पण्णत्ते, तं चेव से पमाणे जयंते देव पच्चत्थिमेणं से रायहाणी जाव महिड्डिए ।
कहिं णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स अपराइए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए जंबुद्दीवे दीवे उत्तरपेरंते लवणसमुद्दस्स उत्तरद्धस्स दाहिणेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे अपराइए णामं दारे पण्णत्ते । तं चेव पमाणं । राहाणी उत्तरेणं जाव अपराइए देवे, चउण्हवि अण्णंमि जंबुद्दीवे ।
[१४४] हे भगवन् ! जम्बूदीप नामक द्वीप का वैजयन्त नाम का द्वार कहाँ कहा गया है ?
गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मेरुपर्वत के दक्षिण में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर उस द्वीप की दक्षिण दिशा के अन्त में तथा दक्षिण दिशा के लवणसमुद्र से उत्तर में जम्बूद्वीप नामक द्वीप का वैजयन्त द्वार कहा गया है। यह आठ योजन ऊँचा और चार योजन चौड़ा है - आदि सब वक्तव्यता वही कहना चाहिए जो विजयद्वार के लिए कही गई है यावत् यह वैजयन्त द्वार नित्य है ।
भगवन् ! वैजयन्त देव की वैजयंती नाम की राजधानी कहाँ है ? गौतम ! वैजयन्त द्वार की दक्षिण दिशा में तिर्यक् असंख्येय द्वीप समुद्रों को पार करने पर आदि वर्णन विजयद्वार के तुल्य कहना चाहिए यावत् वहाँ वैजयंत नाम का महर्द्धिक देव है ।
हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का जयन्त नाम का द्वार कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप की पश्चिम दिशा के अन्त में तथा लवणसमुद्र के पश्चिमार्ध के पूर्व में शीतोदा महानदी के आगे जम्बूद्वीप का जयन्त नाम का द्वार है । वही वक्तव्यता कहानी चाहिए यावत् वहाँ जयन्त नाम का महर्द्धिक देव है और उसकी राजधानी जयन्त द्वार के पश्चिम में तिर्यक् असंख्य द्वीप - समुद्रों को पार करने पर आदि वर्णन विजयद्वार के समान है ।
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हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का अपराजित नाम का द्वार कहाँ कहा गया है ? गौतम ! मेरुपर्वत के उत्तर में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप की उत्तर दिशा के अन्त में तथा लवणसमुद्र के उत्तरार्ध दक्षिण में जम्बूद्वीप का अपराजित नाम का द्वार है । उसका प्रमाण विजयद्वार के समान है । उसकी राजधानी अपराजित द्वार के उत्तर में तिर्यक् असंख्यात द्वीप-समूहों को लांघने के बाद आदि वर्णन विजया राजधानी के समान है यावत् वहाँ अपराजित नाम का महर्द्धिक देव है। ये चारों राजधानियां इस प्रसिद्ध जम्बूद्वीप में न होकर दूसरे जम्बूद्वीप में हैं ।
१४५. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवइए अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते ?