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________________ ततीय प्रतिपत्ति :विजयदेवका उपपात और उसका अभिषेक] [४१५ १९. पकारप्रविभक्ति यावत् मकार प्रविभक्ति। २०. अशोकपल्लवप्रविभक्ति यावत् कोशाम्बपल्लवप्रविभक्ति। २१. पद्मलताप्रविभक्ति यावत् श्यामलताप्रविभक्ति रूप अभिनय। २२. द्रुत नामक नाट्यविधि। २३. विलम्बित नामक नाट्यविधि। २४. द्रुतविलम्बित नामक नाट्यविधि। २५. अंचित नामक नाट्यविधि। २६. रिभित नामक नाट्यविधि। २७. अंचित-रिभित नामक नाट्यविधि। २८. आरभट नामक नाट्यविधि। २९. भसोल नामक नाट्यविधि। ३०. आरभट-भसोल नामक नाट्यविधि। ३१. उत्पातनिपातप्रसक्त संकुचितप्रसारित रेकरचित (रियारिय) भ्रान्त-सम्भ्रान्त नामक नाट्यविधि। ३२. चरमचरमनामानिबद्धनामा-भगवान वर्धमान स्वामी का चरम पूर्व मनुष्यभव, चरम देवलोक भव, चरम च्यवन, चरम गर्भसंहरण, चरम तीर्थंकर जन्माभिषेक, चरम बालभाव, चरम यौवन, चरम निष्क्रमण, चरम तपश्चरण, चरम ज्ञानोत्पाद, चरम तीर्थप्रवर्तन, चरम परिनिर्वाण को बताने वाला अभिनय। उक्त बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों में से कुछ का ही उल्लेख इस सूत्र में किया गया है। वाद्य चार प्रकार के हैं- (१) तत-मृदंग, पटह आदि। (२) वितत-वीणा आदि। (३) घन-कंसिका आदि। (४) शुषिर-बांसुरी (काहला) आदि। गेय चार प्रकार के हैं (१) उत्क्षिप्त-प्रथम आरंभिक रूप। (२) प्रवृत्त-उत्क्षिप्त अवस्था से अधिक ऊँचे स्वर से गेय। (३) मन्दाय-मध्यभाग में मूर्छनादियुक्त मंद-मंद घोलनात्मक गेय। (४) रोचितावसान-जिस गेय का अवसान यथोचित रूप से किया गया हो। अभिनेय के चार प्रकार हैं (१) दार्टान्तिक (२) प्रतिश्रुतिक (३) सामान्यतोविनिपातिक और (४) लोकमध्यावसान । इनका स्वरूप नाट्यकुशलों द्वारा जानना चाहिए।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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