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________________ ४१४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र जलते-तपते-विशेष तपने लगते हैं, कोई देव गर्जना करते हैं, कोई देव बिजलियाँ चमकाते हैं, कोई देव वर्षा करने लगते हैं, कोई देव गर्जना, बिजली चमकाना और बरसाना तीनों काम करते हैं, कोई देव देवों का सम्मेलन करते हैं, कोई देव देवों को हवा में नचाते हैं, कोई देव देवों में कहकहा मचाते हैं, कोई देव हु हु हु हु करते हुए हर्षोल्लास प्रकट करते हैं, कोई देव उक्त सभी क्रियाएँ करते हैं, कोई देव देवोद्योत करते हैं, कोई देव विद्युत का चमत्कार करते हैं, कोई देव चेलोत्क्षेप (वस्त्रों को हवा में फहराना) करते हैं। कोई देव उक्त सब क्रियाएँ करते हैं। किन्हीं देवों के हथों में उत्पल कमल हैं यावत् किन्हीं के हाथों में सहस्रपत्र कमल हैं, किन्हीं के हाथों में घंटाएँ हैं, किन्हीं के हाथों में कलश हैं, यावत् किन्हीं के हाथों में धूप के कडुच्छक हैं। इस प्रकार वे देव हृष्ट-तुष्ट हैं यावत् हर्ष के कारण उनके हृदय विकसित हो रहे हैं। वे उस विजया राजधानी में चारों ओर इधर-उधर दौड़ रहे हैं-भाग रहे हैं। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में कतिपय नाट्यविधियों, वाद्यविधियों, गेयों और अभिनयों का उल्लेख है। राजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभ देव के द्वारा भगवान् श्री महावीर स्वामी के सन्मुख बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों का प्रदर्शन करने का उल्लेख है। वे बत्तीस नाट्यविधियाँ इस प्रकार हैं १. स्वस्तिकादि अष्टमंगलाकार अभिनयरूप प्रथम नाट्यविधि। २. आवर्त प्रत्यावर्त यावत् पद्मलताभक्ति चित्राभिनयरूप द्वितीय नाट्यविधि। ३. ईहामृगवृषभतुरगनर यावत् पद्मलताभक्ति चित्रात्मक तृतीय नाट्यविधि। ४. एकताचक्र द्विधाचक्र यावत् अर्धचक्रवालाभिनय रूप। ५. चन्द्रावलिप्रविभक्ति सूर्योद्गमप्रविभक्ति यावत् पुष्पावलिप्रविभक्ति रूप। ६. चन्द्रोद्गमप्रविभक्ति सूर्योद्गमप्रविभक्ति अभिनयरूप। ७. चन्द्रागमन-सूर्यागमनप्रविभक्ति अभिनयरूप। ८. चन्द्रावरणप्रविभक्ति सूर्यावरणप्रविभक्ति अभिनय रूप। ९. चन्द्रास्तमयनप्रविभक्ति सूर्यास्तमयनप्रविभक्ति अभिनय। १०. चन्द्रमण्डलप्रविभक्ति सूर्यमण्डलप्रविभक्ति यावत् भूतमण्डलप्रविभक्तिरूप अभिनय। ११. ऋषभमण्डलप्रविभक्ति सिंहमण्डलप्रविभक्ति यावत् मत्तगजविलम्बित अभिनय रूप द्रुतविलम्बित नाट्यविधि। १२. सागरप्रविभक्ति नागप्रविभक्ति अभिनय रूप। १३. नन्दाप्रविभक्ति चम्पाप्रविभक्ति रूप अभिनय। १४. मत्स्याण्डकप्रविभक्ति यावत् जारमारप्रविभक्ति रूप अभिनय। १५. ककारप्रविभक्ति यावत् डकारप्रविभक्ति रूप अभिनय। १६. चकारप्रविभक्ति यावत् बकारप्रविभक्ति रूप अभिनय। १७. टकारप्रविभक्ति यावत् णकारप्रविभक्ति । १८. तकारप्रविभक्ति यावत् नकारप्रविभक्ति।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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