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________________ ४१२] [जीवाजीवाभिगमसूत्र अप्पेगइया देवा पीणंति,अप्पेगइया देवा बुक्कारेंति,अप्पेगइया देवा तंडवेंति,अप्पेगइया देवा लासेंति, अप्पेगइया देवा पीणंति बुक्कारेंति तंडवेंति, लासेंति, अप्पेगइया देवा अप्फोडंति, अप्पेगइया देवा वग्गंति, अप्पेगइया देवा तिवतिं छिंदंति, अप्पेगइया देवा अप्फोडेंति वग्गंति तिवतिं छिंदंति, अप्पेगइया देवा हयहेसियं करेंति, अप्पेगइया देवा हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा हयहेसियं करेंति हत्थिगुलगुलाइयं करेंति रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा उच्छोलेंति, अप्पेगइया देवा पच्छोलेति, अप्पेगइया देवा उक्किट्ठिओ करेंति, अप्पेगइया देवा उच्छोलेंति पच्छोलेंति उक्किट्ठिओ करेंति, अप्पेगइया देवा सीहणादं करेंति, अप्पेगइया देवा पाददद्दरयं करेंति,अप्पेगइया देवा भूमिचवेडं दलयंति, अप्पेगइया देवा सीहणादं पाददद्दरयं भूमिचवेडं दलयंति,अप्पेगइया देवा हक्कारेंति अप्पेगइया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगइया देवा थक्कारेंति,अप्पेगइया देवा पुक्कारेंति, अप्पेगइया देवानामाइं सावेंति, अप्पेगइया देवा हक्करेंति बुक्कारेंतिथक्कारेंति पुक्कारेंतिणामाइंसाति;अप्पेगइया देवा उप्पतंति अप्पेगइया देवाणिवयंति, अप्पेगइया देवा परिवयंति,अप्पेगइया देवा उप्पयंति णिवयंति परिवयंति, अप्पेगइया देवा जलंति, अप्पेगइया देवा तवंति, अप्पेगइया देवा पतवंति, अप्पेगइया देवा जलंति तवंति पतवंति,अप्पेगइया देवा गज्जेंति,अप्पेगइया देवा विज्जुयायंति,अप्पेगइया देवा वासंति, अप्पेगइया देवा गज्जति विजुयायंति वासंति, अप्पेगइया देवा सन्निवायं करेंति, अप्पेगइया देवा देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया देवा देवकहकहं करेंति अप्पेगइया देवा दुहदुहं करेंति, अप्पेगइया देवा देवसन्निवायं देवउक्कलियं देवकहकहं देव दुहदुहं करेंति। अप्पेगइया देवा देवुज्जोयं करेंति अप्पेगइया देवा विज्जुयारं करेंति, अप्पेगइया देवा चेलुक्खेवं करेंति अप्पेगइया देवा देवुज्जोयं विजुयारं चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवा उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया घंटाहत्थगया-कलसहत्थगया जाव धूवकडुच्छगया हट्टतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया विजयाए रायहाणीए सव्वओ समंता आधाति परिधावेंति। [१४१] (५) तदनन्तर उस विजयदेव के महान् इन्द्राभिषेक के चलते हुए कोई देव दिव्य सुगन्धित जल की वर्षा इस ढंग से करते हैं जिससे न तो पानी अधिक होकर बहता है, न कीचड़ होता है अपितु विरल बूंदोंवाला छिड़काव होता है। जिससे रजकण और धूलि दब जाती है। कोई देव उस विजया राजधानी को निहतरजवाली, नष्टरज वाली, भ्रष्टरज वाली, प्रशान्तरज वाली, उपशान्तजल वाली बनाते हैं। कोई देव उस विजया राजधानी को अन्दर और बाहर से जल का छिड़काव कर, सम्मान (झाड़-बुहार) कर, गोमयादि से लीपकर तथा उसकी गलियों और बाजारों को छिड़काव से शुद्ध कर साफ-सुथरा करने में लगे हुए हैं। कोई देव विजया राजधानी में मंच पर मंच बनाने में लगे हुए हैं। कोई देव अनेक प्रकार के रंगों से रंगी हुई एवं जयसूचक विजयवैजयन्ती नामक पताकाओं पर पताकाएँ लगाकर विजया राजधानी को सजाने में लगे हुए हैं, कोई देव विजया राजधानी को चूना आदि से पोतने में और चंदरवा आदि बांधने में तत्पर हैं। कोई देव गोशीर्ष चन्दन, सरस लाल चन्दन और चन्दन के चूरे के लेपों से अपने हाथों को लिप्त करके पांचों अंगुलियों के छापे लगा रहे हैं। कोई देव विजया राजधानी के घर-घर दरवाजों पर चन्दन के कलश रख
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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