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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :विजयदेवका उपपात और उसका अभिषेक] [४११ से, समस्त विभूषा से, समस्त संभ्रम (उत्साह) से (सर्वारोहण सर्व स्वरसामग्री से सर्व नाटकों से) समस्त पुष्प-गंध-माल्य अलंकार रूप विभूषा से, सर्व दिव्य वाद्यों की ध्वनि से, महती (बहुत बड़ी) ऋद्धि, महती द्युति, महान् बल (सैन्य) महान् समुदय (आभियोग्य परिवार), महान् एक साथ पटु पुरुषों से बजाये गये वाद्यों के शब्द से, शंख, पणव (ढोल), नगाडा, झेरी, झल्लरी, खरमुही (काहला), हुडुक्क (बड़ा मृदंग), मुरज, मृदंग एवं दुंदुभि के निनाद और गूंज के साथ उस विजयदेव को बहुत उल्लास के साथ इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त करते हैं। १४१.[५] तए णंतस्स विजयदेवस्स महया महया इंदाभिसेगंसि वट्टमाणंसि अप्पेगइया देवा णच्चोदगंणातिमट्टियं पविरलफुसियं दिव्वं सुरभिं रयरेणुविणासणं गंधोदगवासं वासंति। अप्पेगइया देवा णिहत्तरयं ण?रयं भट्ठरयं पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं सब्भितरबाहिरियं आसित्तसम्मज्जितोवलित्तं सित्तसुइम्मट्ठरत्थंतरावणवीहियं करेंति। अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं मंचातिमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं णाणाविहरागरंजियऊसिय जयविजयवेजयन्तीपडागाइपडागमंडियं करेंति।अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं लाउल्लोइयमहियं करेंति।अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं गोसीससरसरत्तचंदणददरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति।अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं आसत्तोसत्तविपुलवट्टवग्धारिमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कधूवडज्झंतमघमधेतगंधद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेंति। अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं वइरवासं पुप्फवासं मल्लवासं गंधवासं चुण्णवासं वत्थवासं आभरणवासं। अप्पेगइया देवा हिरण्णविधिं भाइंति, एवं सुवण्णविधिं रयणविधिं वइरविधिं पुष्फविधिं चुण्णविधि गंधविधिं वत्थविधिं आभरणविधिं भाइंति। ___अप्पेगइया देवा दुयं णट्टविधिं उवदंसेंति, अप्पेगइया विलंबितं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगइया देवा दुयविलंबितं णट्टविधिं उवदंसेंति, अप्पेगइया देवा अंचियं नट्टविधिं उवदंसेंति, अप्पेगडया देवा रिभियंणडविधिं उवदंसेंति, अप्पेगडया देवाअंचियरिभितं णामं दिव्वंणटविधिं उवदंसेंति।अप्पेगइया देवा आरभडं णट्टविहिं उवदंसेंति,अप्पेगइया देवा भसोलंणट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगइया देवा आरभडभसोलंणामं दिव्वंणट्टविहिं उवदंसेंति।अप्पेगइया देवा उप्पायणिवायपवुत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभंतं णामं दिव्वं नट्टविधिं उवदंसेंति।अप्पेगइया देवा चउव्विहं वाइयं वादेंति, तं जहा-ततं विततं घणं झुसिरं।अप्पेगइया देवा चउव्विहं गेयं गायंति, तं जहा-. उक्खित्तयं, पवत्तयं, मंदायं, रोइयावसाणं।अप्पेगइया देवा चउव्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा-दिटुंतियं, पाडंतियं सामंतोपणिवाइयं, लोगमज्झावसाणियं।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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