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________________ ३३६ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र परिषद् में साठ हजार देव हैं और बाह्य परिषद् में सत्तर हजार देव हैं। आभ्यन्तर परिषद् की देवियाँ २२५ हैं, मध्यम परिषद् की देवियाँ २०० हैं तथा बाह्य परिषद् की देवियाँ १७५ हैं। हे भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारारज भूतानन्द की आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति कितनी कही है ? यावत् बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति कितनी कही है ? गौतम ! भूतानन्द के आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति देशोन पल्योपम है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति कुछ अधिक आधे पल्योपम की है और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति आधे पल्योपम की है। आभ्यन्तर परिषद् की देवियों की स्थिति आधे पल्योपम की है, मध्यम परिषद् की देवियों की स्थिति देशोन आधे पल्योपम की है और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति कुछ अधिक पाव पल्योपम है। परिषदों का अर्थ आदि कथन चमरेन्द्र की तरह जानना। शेष वेणुदेव से लगाकर महाघोष पर्यन्त की वक्तव्यता स्थानपद के अनुसार पूरी-पूरी कहना चाहिए। परिषद् के विषय में भिन्नता है वह इस प्रकार है-दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषद् धरणेन्द्र की तरह और उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषदा भूतानन्द की तरह कहनी चाहिए। परिषदों, देव-देवियों की संख्या तथा स्थिति भी उसी तरह जान लेनी चाहिए। विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों में असुरकुमार और नागकुमार भवनपतिदेवों के भवन, परिषदा, परिषदा का प्रमाण और स्थिति का वर्णन किया गया है जो मूलपाठ से ही स्पष्ट है। आगे के सुपर्णकुमार आदि भवनवासियों के लिए धरणेन्द्र और भूतानन्द की तरह जानने की सूचना है। दक्षिण दिशा के भवनपतियों का वर्णन धरणेन्द्र की तरह और उत्तर दिशा के भवनपतियों की वर्णन भूतानन्द की तरह जानना चाहिए। इन भवनपतियों में भवनों की संख्या, इन्दों के नाम और परिमाण आदि में भिन्नता है वह पूर्वांचार्यों ने सात गाथाओं में बताई हैं जिनका भावार्थ इस प्रकार हैं - ___ असुरकुमारों के ६४ लाख भवन हैं, नागकुमारों के ८४ लाख, सुपर्णकुमारों के ७२ लाख, वायुकुमारों के९६ लाख, द्वीपकुमार, दिक्कुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार इन छह भवनपतियों के प्रत्येक के ७६-७६ लाख भवन हैं। (१-२) दक्षिण और उत्तर दिशाओं के भवनवासियों के भवनों की अलग-अलग संख्या इस प्रकार है दक्षिण दिशा के असुरकुमारों के ३४ लाख भवन, नागकुमशों के ४४ लाख, सुपर्णकुमारों के ३८ लाख, वायुकुमारों के ५० लाख, शेष ६ द्वीप-दिशा-उदधि, विद्युत, स्तनित, अग्निकुमरों के प्रत्येक के ४०४० लाख भवन हैं। (३) १. चउसट्ठी असुराणं चुलसीइ चेव होइ नागाणं । बावत्तरि सुवन्ने वायुकुमाराण छनउह॥१॥ दीव दिस उदहीणं विज्जुकुमारिंद थणियमग्गीणं । छण्हं पि जुयलयाणं छावत्तरिओ सयसहस्सा ॥२॥ चोत्तीसा चोयाला अट्ठतीसं च सयसहस्साई। पण्णा चत्तालीसा दाहिणओ होंति भवणाई॥३॥ (शेष अगले पृष्ठ पर)
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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