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________________ [ ३३७ तृतीय प्रतिपत्ति: नागकुमारों की वक्तव्यता ] उत्तर दिशा के असुरकुमारों के भवन ३० लाख, नागकुमारों के ४० लाख, सुपर्णकुमारों के ३४ लाख, वायुकुमारों ४६ लाख शेष छहों के प्रत्येक के ३६- ३६ लाख भवन हैं। इस प्रकार दक्षिण और उत्तर दोनों दिशाओं के भवनपतियों के भवनों की संख्या मिलाकर कुल भवनसंख्या प्रथम और दूसरी गाथा में कही गई है। भवनपति इन्द्रों के नाम को बताने वाली गाथाओं में पहले दक्षिण दिशा के इन्द्रों के नाम बताये हैं दक्षिण दिशा के असुरकुमारों का इन्द्र चमर है । नागकुमारों का धरण, सुपर्णकुमारों का वेणुदेव, विद्युत्कुमारों का हरिकान्त, अग्निकुमारों का अग्निशिख, द्वीपकुमारों का पूर्ण, उदधिकुमारों का जलकान्त, दिक्कुमारों का अमितगति, वायुकुमारों का वेलम्ब और स्तनितकुमारों का घोष इन्द्र है । उत्तर दिशा के असुरकुमारों का इन्द्र बलि है। नागकुमारों का भूतानन्द, सुपर्णकुमारों का वेणुदाली, विद्युत्कुमारों का हरिस्सह, अग्निकुमारों का अग्निमाणव, द्वीपकुमारों का विशिष्ट, उदधिकुमारों का जलप्रभ, दिककुमारों का अमितवाहन, वायुकुमारों का प्रभंजन और स्तनितकुमारों का महाघोष है । भवनादि - दर्शक यंत्र इन्द्र भवनपति दक्षिण उत्तर नाम के भवन के भवन असुरकुमार ३४लाख ३० लाख नागकुमार ४४ लाख ४० लाख सुपर्णकुमार ३८,, ३४ विद्युत्कुमार ४० अग्निकुमार ४० ३६ कुमार ४० उदधिकुमार ४० दिक्कुमार ४० वायुकुमार ५० स्तनितकुमार ४० "" "" "" "" "" "" "" "" " ३६ " ३६ " ३६ "" ३६ " ४६” ३६ "1 कुल भवन ६४ लाख ८४ लाख ७२ ७६ ७६ ७६ ७६ ७६ ९६ ७६ "" "" "" "" "2 "" "" "" तीसा चत्तालीसा चोत्तीसं चेव सयसहस्साइं । छायाला छत्तीसा उत्तरओ होंति भवणाई ॥ ४ ॥ चमरे धरणे तह वेणुदेव हरिकंत अग्गिसिहे य । पुणे जलकंते अमिए वेलंब घोसे य ॥ ५ ॥ बलि भूयाणंदे वेणुदालि हरिस्सह अग्गिमाणव विसिट्ठे । जलप्पभ अमियवाहण पभंजणे चेव महघोसे ॥ ६ ॥ दक्षिण चमर धरण भूतानंद वेणुदेव वेणुदाि हरिकांत हरिस्सह अग्निशिख अग्निमाणव पूर्ण विशिष्ट जलकांत जलप्रभ अमितगति अमितवाहन उत्तर बलि लंब प्रभंजन महाघोष घोष चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं । सामाणियां उ एए चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥ ७ ॥ - संग्रहणी गाथाएँ समानिकदेव आत्मरक्षक देव चमर के २ लाख छप्पन हजार बलि के २ लाख चालीस हजार २४ हजार चमर के ६४ हजार बलि के ६० हजार शेष सब के ६००० " "" "" "" "" "2 "" "" " " ""
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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