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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: देववर्णन] [३२५ द्वीप नाम अश्वमुख हस्तिमुख सिंहमुख व्याघ्रमुख विदिशा उत्तरपूर्व दक्षिणपूर्व दक्षिणपश्चिम उत्तरपश्चिम (५) पंचम चतुष्क अवगाहन आयाम परिधि द्वीप नाम। ७०० योजन ७०० योजन २२१३ यो. विशेषाधिक अश्वकर्ण सिंहकर्ण अकर्ण कर्णप्रावरण विदिशा द्वीप नाम अश्वकर्ण सिंहकर्ण अकर्ण कर्णप्रावरण (६) षष्ठ चतुष्क अवगाहन आयाम परिधि द्वीप नाम उत्तरपूर्व ८०० योजन ८०० योजन २५२९ यो. विशेषाधिक उल्कामुख दक्षिणपूर्व मेघमुख दक्षिणपश्चिम विद्युन्मुख उत्तरपश्चिम विद्युद्दन्त द्वीप नाम उल्कामुख मेघमुख विद्युन्मुख विद्युदन्त (७) सप्तम चतुष्क विदिशा अवगाहन आयाम परिधि द्वीप नाम उत्तरपूर्व ९०० योजन ९०० योजन २८४५ यो. विशेषाधिक घनदन्त दक्षिणपूर्व , लष्टदन्त दक्षिणपश्चिम . , गूढदन्त उत्तरपश्चिम शुद्धदन्त देववर्णन ११४. से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-भवणवासी, वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। [११४] देव कितने प्रकार के हैं ? देव चार प्रकार के हैं, यथा-१. भवनवासी, २. वानव्यंतर, ३. ज्योतिष्क और ४. वैमानिक। ११५. से किं तं भवणवासी ? भवणवासी दसविहा पण्णत्ता,तं जहा-असुरकुमारा जहा पण्णवणापदे देवाणं भेओ तहा भाणियव्वो जाव अणुत्तरोववाइया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-विजय वेजयंत जाव सव्वट्ठसिद्धगा, से तं अणुत्तरोववाइया।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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