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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: एकोरुक मनुष्यों की स्थिति आदि ] पर ७०० योजन लम्बे-चौड़े और २२१३ योजन से कुछ अधिक की परिधि वाले पूर्वोक्त पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से घिरे हुए एवं जम्बूद्वीप की वेदिका से ७०० योजन के अन्तर पर अश्वकर्ण हरिकर्ण, अकर्ण और कर्णप्रावरण नाम के चार द्वीप हैं । [३२३ फिर इन्हीं अश्वकर्ण आदि चार द्वीपों के आगे यथाक्रम से पूर्वोत्तरादि विदिशाओं में ८००-८०० योजन दूर जाने पर आठ सौ योजन लम्बे-चौड़े, २५२९ योजन से कुछ अधिक परिधि वाले, पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से सुशोभित, जम्बूद्वीप की वेदिका से ८०० योजन दूरी पर उल्कामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख और विद्युद्दन्त नाम के चार द्वीप हैं । तदनन्तर इन्हीं उल्कामुख आदि चारों द्वीपों के आगे क्रमशः पूर्वोत्तरादि विदिशाओं में ९००-९०० योजन की दूरी पर नौ सौ योजन लम्बे-चौड़े तथा २८४५ योजन से कुछ अधिक परिधि वाले, पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से परिमंडित, जम्बूद्वीप की वेदिका से ९०० योजन के अन्तर पर चार द्वीप और हैं, जिनके नाम क्रमश: ये हैं - घनदन्त, लष्टदन्त, गूढदन्त और शुद्धदन्त । हिमवान् पर्वत की दाढ़ों पर चारों विदिशाओं में स्थित ये सब द्वीप (७ x ४ = २८) अट्ठाईस हैं। शिखरी पर्वत की दाढ़ों पर भी इसी प्रकार २८ अन्तर्वीप हैं। शिखरीपर्वत की लवणसमुद्र में गई दाढ़ों पर, लवणसमुद्र के जलस्पर्श से लेकर पूर्वोक्त दूरी पर पूर्वोक्त प्रमाण वाले, चारों विदिशाओं में स्थित एकोरुक आदि उन्हीं नामों वाले अट्ठाईस द्वीप हैं। इनकी लम्बाईचौड़ाई, परिधि, नाम आदि सब पूर्ववत् हैं। दोनों मिलाकर छप्पन अन्तर्द्धप हैं। इन द्वीपों में रहने वाले मनुष्य अन्तर्द्धपिक मनुष्य कहे जाते हैं । यहाँ अन्तर्द्धपिकों का वर्णन पूरा होता है । ११३. से किं तं अकम्मभूभगमणुस्सा ? अकम्मभूमगमणुस्सा तीसविहा पण्णत्ता, तं जहा - पंचहिं हेमवएहिं, एवं जहा पण्णवणापदे जाव पंचहिँ उत्तरकुरुहिं से त्तं अकम्मभूमगा । से किं तं कम्मभूमगा ? कम्मभूमगा पण्णरसविहा पण्णत्ता, तं जहा - पंचहिं, भरहेहिं, पंचहिं एरवएहिं, पंचहिं महाविदेहेहिं । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आरिया मिलेच्छा, एवं जहा पण्णवणापदे जाव से त्तं आरिया, से त्तं गब्भवक्कंतिया, से त्तं मणुस्सा । [११३] हे भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! अकर्मभूमिक मनुष्य तीस प्रकार के हैं, यथा- पांच हैमवत में (पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु क्षेत्र में) रहने वाले मनुष्य । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना चाहिए। यह तीस प्रकार के अकर्मभूमिक मनुष्यों का कथन हुआ । हे भगवन् ! कर्मभूमिक मनुष्यों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! कर्मभूमिक मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हैं, यथा- पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह के मनुष्य। वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं, यथा-आर्य और म्लेच्छ । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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