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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र ITI आयाम - विष्कंभ और २५२९ योजन से कुछ अधिक की परिधि है। सातवें चतुष्क में नौ सौ योजन का आयाम - विष्कंभ और २८४५ योजन से कुछ विशेष की परिधि है। जिसका जो आयाम - विष्कंभ है वही उसका अवगाहन है। (प्रथम चतुष्क से द्वितीय चतुष्क की परिधि ३१६ योजन अधिक, इसी क्रम से ३१६३१६ योजन की परिधि बढ़ाना चाहिए। विशेषाधिक पद सबके साथ कहना चाहिए ) ॥ २ ॥ ३२२ ] आयुष्मन् श्रमण ! शेष वर्णन एकोरुकद्वीप की तरह शुद्धदंतद्वीप पर्यन्त समझ लेना चाहिए यावत् वे मनुष्य देवलोक में उत्पन्न होते हैं। हे भगवन् ! उत्तरदिशा में एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहाँ कहा गया है ? गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधरपर्वत के उत्तरपूर्वी चरमान्त से लवणसमुद्र तीन सौ योजन आगे जाने पर वहाँ उत्तरदिशा के एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप हैइत्यादि सब वर्णन दक्षिणदिशा के एकोरुक द्वीप की तरह जानना चाहिए, अन्तर यह है कि यहाँ शिखरी वर्षधरपर्वत की विदिशाओं में ये स्थित हैं, ऐसा कहना चाहिए। इस प्रकार शुद्धदंतद्वीप पर्यन्त कथन करना चाहिए। यह अन्तर्खीपक मनुष्यों का वर्णन पूरा हुआ । विवेचन - एकोरुक, आभाषिक, लांगूलिक, और वैषाणिक इन चार अन्तद्वीपों का वर्णन इसके पूर्ववर्ती सूत्र के विवेचन में किया है। इन्हीं एकोरुक आदि चारो द्वीपों के आगे यथाक्रम से पूर्वोत्तर आदि प्रत्येक विदिशा में चार-चार सौ योजन आगे चलने पर चार-चार सौ योजन लम्बे-चौड़े और कुछ अधिक १२६५ योजन की परिधि वाले पूर्वोक्त पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से सुशोभित तथा जम्बूद्वीप की वेदिका से ४०० योजन प्रमाण दूर हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण और शष्कुलिकर्ण नामक चार द्वीप हैं । एकोरुक द्वीप के आगे हयकर्ण है, आभाषिक के आगे गजकर्ण, वैषाणिक के आगे गोकर्ण और लांगूलिक के आगे कुलकर्ण द्वीप है। इसके अनन्तर इन हयकर्ण आदि चारों द्वीपों से आगे पांच-पांच सौ योजन की दूरी पर चार द्वीप हैं - जो पांच-पांच सौ योजन लम्बे-चौड़े हैं और पूर्ववत् चारों विदिशाओं में स्थित हैं। इनकी परिधि विशेषाधिक १५२१ योजन की है। ये पूर्वोक्त पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड से सुशोभित हैं। जम्बूद्वीप की वेदिका से ये ५०० योजनप्रमाण अन्तर वाले हैं। इनके नाम हैं- आदर्शमुख, मेण्द्रमुख, अयोमुख और गोमुख । इनमें से हयकर्ण के आगे आदर्शमुख, गजकर्ण के आगे मेण्ढ्रमुख, गोकर्ण के आगे अयोमुख और शष्कुलिकर्ण के आगे गोमुख द्वीप हैं। इन आदर्शमुख आदि चारों द्वीपों के आदे छह-छह सौ योजन की दूरी पर पूर्वोत्तरादि विदिशाओं में फिर चार द्वीप हैं - अश्वमुख, हस्तिमुख, सिंहमुख और व्याघ्रमुख । ये चारों द्वीप छह सौ योजन लम्बेचौड़े और १८९७ योजन से कुछ अधिक परिधि वाले हैं। पूर्वोक्त पद्मवरवेदिका और वनखंड से शोभित हैं। जम्बूद्वीप की वेदिका से ६०० योजन की दूरी पर स्थित है । इन अश्वमुख आदि चारों द्वीपों के आगे क्रमशः पूर्वोत्तरादि विदिशओं में ७००-७०० योजन की दूरी
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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