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तृतीय प्रतिपत्ति : एकोरुक मनुष्यों की स्थिति आदि]
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_ [१११] (१८) हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के आभाषिक मनुष्यों का आभाषिक नाम का द्वीप कहाँ
गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में चुल्लहिमवान् वर्षधरपर्वत के दक्षिण-पूर्व (अग्निकोण) चरमांत से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर वहाँ आभाषिक मनुष्यों का आभाषिक नामक द्वीप है। शेष समस्त वक्तव्यता एकोरुक द्वीप की तरह कहनी चाहिए।
हे भगवन् ! दाक्षिणात्य लांगलिक मनुष्यों का लांगलिक द्वीप कहाँ है ?
गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में और चुल्लहिमवन्त वर्षधर पर्वत के उत्तरपूर्व (ईशानकोण) चरमांत से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर वहाँ लांगूलिक मनुष्यों का लांगूलिक द्वीप है। शेष वक्त व्यता एकोरुक द्वीपवत्।
हे भगवन् ! दाक्षिणात्य वैषाणिक मनुष्यों का वैषाणिक द्वीप कहाँ है ?
हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में और चुल्लहिमवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) के चरमांत से तीन सौ योजन जाने पर वहाँ वैषाणिक मनुष्यों का वैषाणिक नामक द्वीप है। शेष वक्तव्यता एकोरुकद्वीप की तरह जानना चाहिए।
विवेचन-अन्तर्द्वीप हिमवान और शिखरी इन दो पर्वतों की लवणसमुद्र में निकली दाढ़ाओं पर स्थित हैं । हिमवान पर्वत की दाढा पर अट्ठाईस अन्तद्वीप हैं और शिखरीपर्वत की दाढ़ा पर अट्ठाईस अन्तर्वीप हैं-यों छप्पन अन्तर्वीप हैं। हिमवान पर्वत जम्बूद्वीप में भरत और हैमवत क्षेत्रों की सीमा करने वाला है। वह पूर्व-पश्चिम के छोरों से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। लवणसमुद्र के जल स्पर्श से लेकर पूर्व-पश्चिम दिशा में जो गजदन्ताकार दाढ़ें निकली हैं। उनमें से ईशानकोण में जो दाढा निकली है उस पर हिमवान पर्वत से तीन.सौ योजन की दूरी पर लवणसमुद्र में ३०० योजन लम्बा-चौड़ा और ९४९ योजन से कुछ अधिक की परिधि वाला एकोरुक नाम का द्वीप है। जो ३०० धनुष विस्तृत, दो कोस ऊँची पद्मवरवेदिका से चारों
और से मण्डित है। उसी हिमवान पर्वत के पर्यन्त भाग से दक्षिणपूर्वकोण में तीन सौ योजन दूर लवणसमुद्र में अवगाहन करते ही दूसरी दाढा आती है जिस पर एकोरुक द्वीप जितना लम्बा-चौड़ा आभाषिक नामक द्वीप है। उसी हिमवान पर्वत के पश्चिम दिशा के छोर से लेकर दक्षिण-पश्चिमदिशा (नैऋत्यकोण) में तीन सौ योजन लवणसमुद्र में अवगाहन करने के बाद एक दाढ आती है जिस पर उसी प्रमाण का लांगूलिक नाम का द्वीप है एवं उसी हिमवान पर्वत के पश्चिमदिशा के छोर से लेकर पश्चिमोत्तरदिशा (वायव्यकोण) में तीन सौ योजन दूर लवणसमुद्र में एक दाढा आती है, जिस पर पूर्वोक्त प्रमाण वाला वैषाणिक द्वीप आता है। इस प्रकार ये चारों द्वीप हिमवान पर्वत से चारों विदिशाओं में हैं और समान प्रमाण वाले हैं।
इनका आकार, भाव, प्रत्यवतार मूलपाठानुसार स्पष्ट ही है। ११२. कहिणं भंते ! दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साणं हयकण्णदीवेणामंदीवे पण्णत्ते? गोयमा ! एगोरुयदीवस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुदं चत्तारि