SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८] [जीवाजीवाभिगमसूत्र ते णं मणुस्सा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति कहिं उववजंति ? गोयमा ! तेणं मणुया छम्मासावसेसाउया मिहुणाई पसवंति,अउणासीइंराइंदियाइं मिहुणाई सारक्खंति संगोविंति यासारक्खित्ता संगोवित्ता उस्ससित्ता निस्ससित्ता कासित्ता छीइत्ता अक्किटा अव्वहिया, अपरियाविया ( पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागं परियाविय) सुहंसुहेण कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसुदेवलोएसुदेवत्ताए उववत्तारो भवंति।देवलोयपरिग्गहाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो। [१११] (१७) हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप के मनुष्यों की स्थिति कितनी कही है ? हे गौतम ! जघन्य से असंख्यातवां भाग कम पल्योपम का असंख्यातवां भाग और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण स्थिति है। हे भगवन् ! वे मनुष्य कालमास में काल करके-मरकर कहाँ जाते हैं, कहां उत्पन्न होते हैं ? हे गौतम ! वे मनुष्य छह मास की आयु शेष रहने पर एक मिथुनक (युगलिक) को जन्म देते हैं। उन्न्यासी रात्रिदिन तक उसका संरक्षण और संगोपन करते हैं। संरक्षण और संगोपन करके ऊर्ध्वश्वास लेकर या निश्वास लेकर या खांसकर या छींककर बिना किसी कष्ट के, बिना किसी दुःख के, बिना किसी परिताप के (पल्योपम का असंख्यातवां भाग आयुष्य भोगकर) सुखपूर्वक मृत्यु के अवसर पर मरकर किसी भी देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न होते हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य मरकर देवलोक में ही जाते हैं। . '१११.(१८) कहिं णं भंते ! दाहिणिल्लाणं आभासियमणुस्साणं आभासियदीवेणामं दीवे पण्णत्ते? गोयमा ! जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुदं तिन्नि जोयणसयाई ओगाहित्ता एत्थ णं आभासियमणुस्साणं आभासियदीवे णामंदीवे पण्णत्ते, सेसं जहा एगोरुयाणं णिरवसेसं सव्वं। कहिं णं भंते ! दाहिणिल्लाणं णंगोलिमणुस्साणं पुच्छा ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुदं तिण्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता सेसं जहा एगोरुयमणुस्साणं। कहिं णं भंते ! दाहिणिल्लाणं वेसाणियमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स दाहिणपच्चथिमिल्लाओचरिमंताओलवणसमुदं तिण्णिजोयणसयाइंओगाहित्तासेसंजहा एगोरुयाणं।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy