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________________ ततीय प्रतिपत्ति: एकोरुक स्त्रियों का वर्णन] [३०७ हैं, उनकी जंघाएँ कदली के स्तम्भ से भी अधिक सुन्दर, व्रणादि रहित, सुकोमल, मृदु, कोमल, पास-पास, समान प्रमाणवाली, मिली हुई, सुजात, गोल, मोटी एवं निरन्तर हैं, उनका नितम्बभाग अष्टापद द्यूत के पट्ट के आकार का, शुभ, विस्तीर्ण और मोटा है, (बारह अंगुल) मुखप्रमाण से दूना चौबीस अंगुलप्रमाण, विशाल, मांसल एवं सुबद्ध उनका जघनप्रदेश है, उनका पेट वज्र की तरह सुशोभित, शुभ लक्षणों वाला और पतला होता है, उनकी कमर त्रिवली युक्त, पतली और लचीली होती है, उनकी रोमराजि सरल, सम, मिली हुई, जन्मजात पतली, काली, स्निग्ध, सुहावनी, सुन्दर, सुविभक्त, सुजात (जन्मदोषरहित), कांत, शोभायुक्त, रुचिर और रमणीय होती है। उनकी नाभि गंगा के आवर्त की तरह दक्षिणावर्त, तरंग भंगुर (त्रिवलि से विभक्त) सूर्य की किरणों से ताजे विकसित हुए कमल की तरह गंभीर और विशाल है। उनकी कुक्षि उग्रता रहित, प्रशस्त और स्थूल है। उनके पार्श्व कुछ झुके हुए हैं, प्रमाणोपेत हैं, सुन्दर हैं, जन्मजात सुन्दर हैं, परिमितमात्रायुक्त स्थूल और आनन्द देने वाले है। उनका शरीर इतना मांसल होता है कि उसमें पीठ की हड्डी और पसलियां दिखाई नहीं देतीं। उनका शरीर सोने जैसी कान्तिवाला, निर्मल, जन्मजात सुन्दर और ज्वरादि उपद्रवों से रहित होता है। उनके पयोधर (स्तन) सोने के कलश के समान प्रमाणोपेत, दोनों (स्तन) बराबर मिले हुए, सुजात और सुन्दर हैं, उनके चूचुक उन स्तनों पर मुकुट के समान लगते हैं। उनके दोनों स्तन एक साथ उत्पन्न होते हैं और एक साथ वृद्धिंगत होते हैं। वे गोल उन्नत (उठे हुए) और आकार-प्रकार से प्रीतिकारी होते हैं। उनकी दोनों बाहु भुजंग की तरह क्रमशः नीचे की ओर पतली गोपुच्छ की तरह गोल, आपस में समान, अपनी-अपनी संघियों से सटी हुई, नम्र और अति आदेय तथा सुन्दर होती हैं। उनके नख ताम्रवर्ण के होते हैं। इनका पंजा मांसल होता है, उनकी अंगुलियां पुष्ट, कोमल और श्रेष्ठ होती हैं। उनके हाथ की रेखायें स्निग्ध होती हैं। उनके हाथ में सूर्य, चन्द्र, शंख-चक्र-स्वस्तिक की अलग-अलग और सुविरचित रेखाएँ होती हैं। उनके कक्ष और वस्ति (नाभि के नीचे का भाग) पीन और उन्नत होता है। उनके गाल-कपोल भरे-भरे होते हैं, उनकी गर्दन चार अंगुल प्रमाण और श्रेष्ठ शंख की तरह होती है। उनकी ठुड्डी मांसल, सुन्दर आकार की तथा शुभ होती है। उनका नीचे का होठ दाडिम के फूल की तरह लाल और प्रकाशमान, पुष्ट और कुछ-कुछ वलित होने से अच्छा लगता है। उनका ऊपर का होठ सुन्दर होता है। उनके दांत दही, जलकण, चन्द्र, कुंद, वासंतीकली के समान सफेद और छेदविहीन होते हैं, उनका तालू और जीभ लाल कमल के पत्ते के समान लाल, मृदु और कोमल होते हैं। उनकी नाक कनेर की कली की तरह सीधी, उन्नत, ऋजु और तीखी होती है। उनके नेत्र शरदऋतु के कमल और चन्द्रविकासी नीलकमल के विमुक्त पत्रदल के समान कुछ श्वेत, कुछ लाल और कुछ कालिमा लिये हुए और बीच में काली पुतलियों से अंकित होने से सुन्दर लगते हैं। उनके लोचन पश्मपुटयुक्त, चंचल, कान तक लम्बे और ईषत् रक्त (ताम्रवत्) होते है। उनकी भौंहें कुछ नमे हुए धनुष ती तरह टेढी, सुन्दर, काली और मेघराजि के समान प्रमाणोपेत, लम्बी, सुजात, काली और स्निग्ध होती हैं। उनके कान मस्तक से कुछ लगे हुए और प्रमाणयुक्त होते हैं। उनकी गंडलेखा (गाल और कान के बीच का भाग) मांसल चिकनी और रमणीय होती है। उनका ललाट चौरस, प्रशस्त और समतल होता है, उनका मुख कार्तिकपूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह निर्मल और परिपूर्ण होता है। उनका
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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