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________________ ३०६ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र पदाहिणावत्त तरंग भंगुररविकिरण तरुणबोधित अकोसायंत पउमवणगंभीरवियडनाभी अणुब्भडपसत्थ पीणकुच्छी सण्णयपासा संगयपासा सुजातपासा मितसाइयपीण रइयपासा अकरंडुय कणगरुयगनिम्मल सुजाय णिरुवहय गायलट्ठी कंचणकलससमपमाण समसंहितसुजात लट्ठचूचुयआमेलगजमल जुगल वट्टियअब्भुण्णयरइयसंठिय पयोधराओ भुयंगणुपुव्वतणुयगोपुच्छ वट्ट समसंहित णमिय आएज्ज ललिय बाहाओ तंबणहा मंसलग्गहत्था पीवरकोमल वरंगुलीओ णिद्धपाण्लेिहा रविससि संख चक्कसोत्थिय सुविभत्त सुविरइय पाणिलेहा पीणुण्णय कक्खवत्थिदेसा पडिपुण्णगल्लकवोला चउरंगुलप्पमाण कंबुवर सरिसगीवा मंसलसंठिय पसत्थ हणुया दाडिमपुप्फप्पगास पीवरकुंचियवराधरा सुंदरोत्तरोट्ठा दधिदगरय चंदकुंद वासंतिमउल अच्छिद्दविमलदसणा रत्तुप्पल पत्तमडय सुकुमाल तालुपीहा कणयवरमुउल अकुडिल अब्भुग्गय उज्जुतुंगनासा सारदनवकमलकुमुदकुवलय विमुक्कदलणिगर सरिस लक्खण अंकियकंतणयणा पत्तल चवलायंततं बलोयणाओ आणामिय चावरुइलकिण्हब्भराइसंठिय संगत आयय सुजाय कसिण णिद्धभमुया अल्लीणपमाणजुत्तसवणा पीणमट्ठरमणिज्ज गंडलेहा चउरंस पसत्थसमणिडाला कोमुइर यणिकरविमलपडि पुन्नसोमवयणा छत्तुन्नयउत्तिमंगा कुडिलसुसिणिद्धदीहसिरया, छत्तज्झयजुगथूभदामिणिकमंडलुकलसवाविसोत्थियपडागजवमच्छकुम्भरहवरमकरसुकथालअंकुसअट्ठावइवीइसुपइट्ठकमयूरसिरिदामाभिसेयतोरणमेइणिउदधिवरभवणगिरिवरआयंसललियगयउसभसीहयमरउत्तमपसत्थबत्तीसलक्खण धराओ, हंससरिसगईओ कोइलमधुरगिरसुस्सरीओ, कंता सव्वस्स अणुनयाओ, ववगतवलिपलिया, वंगदुव्वण्णवाहिदोभग्गसोगमुक्काओ उच्चात्तेणं य नराण थोवूणलूसियाओ सभावसिंगारागारचारुवेसा संगयगतहसितभामियचेट्ठियविलाससंलावणिउणजुत्तो वयारकुसला सुंदरथणजहणवदणकरचलणनयणमाला वण्णलावण्णजोवणविलासकलिया नंदणवण विवरचारिणीउव्व अच्छराओ अच्छेरगपेच्छणिज्जा पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। तासिं णं भंते ! मणुईणिं केवइकालस्स आहारटे समुप्पज्जइ ? गोयमा ! चउत्थभत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ। [१११] (१४) हे भगवन् ! इस एकोरुक-द्वीप की स्त्रियों का आकार-प्रकार-भाव कैसा कहा गया है? गौतम ! वे स्त्रियां श्रेष्ठ अवयवों द्वारा सर्वांगसुन्दर हैं, महिलाओं के श्रेष्ठ गुणों से युक्त हैं। उनके चरण अत्यन्त विकसित पद्मकमल की तरह सुकोमल और कछुए की तरह उन्नत होने से सुन्दर आकार के हैं। उनके पांवों की अंगुलियां सीधी, कोमल, स्थूल, निरन्तर, पुष्ट और मिली हुई हैं। उनके नख उन्नत, रति देने वाले, तलिन,-पतले ताम्र जैसे रक्त, स्वच्छ एवं स्निग्ध हैं। उनकी पिण्डलियां रोमरहित, गोल, सुन्दर, संस्थित, उत्कृष्ट शुभलक्षणवाली और प्रीतिकर होती हैं । उनके घुटने सुनिर्मित, सुगूढ और सुबद्धसंधि वाले
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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