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तृतीय प्रतिपत्ति : एकोरुक स्त्रियों का वर्णन]
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भ्रमरों के समान अत्यन्त काले, स्निग्ध और निचित-जमे हुए होते हैं, वे धुंघराले और दक्षिणावर्त होते हैं।
वे मनुष्य लक्षण, व्यंजन और गुणों से युक्त होते हैं। वे सुन्दर और सुविभक्त स्वरूप वाले होते हैं। वे प्रसन्नता पैदा करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप होते हैं।
ये मनुष्य हंस जैसे स्वर वाले, क्रौंच जैसे स्वर वाले, नंदी (बारह वाद्यों का समिश्रित स्वर) जैसे घोष करने वाले, सिंह के समान स्वर वाले और गर्जना करने वाले, मधुर स्वर वाले, मधुर घोष वाले, सुस्वर वाले, सुस्वर और सुघोष वाले, अंग-अंग में कान्ति वाले, वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले, समचतुरस्रसंस्थान वाले, स्निग्धछवि वाले, रोगादि रहित, उत्तम प्रशस्त अतिशययुक्त और निरुपम शरीर वाले, स्वेद (पसीना) आदि मैल के कलंक से रहित और स्वेद-रज आदि दोषों से रहित शरीर वाले, उपलेप से रहित, अनुकूल वायु वेग वाले, कंक पक्षी की तरह निर्लेप गुदाभाग वाले, कबूतर की तरह सब पचा लेने वाले, पक्षी की तरह मलोत्सर्ग के लेप से रहित अपानदेश वाले, सुन्दर पृष्टभाग, उदर और जंघा वाले, उन्नत और मुष्टिग्राह्य कुक्षि वाले और पद्मकमल और उत्पलकमल जैसी सुगंधयुक्त श्वासोच्छ्वास से सुगंधित मुख वाले मनुष्य
- उनकी ऊँचाईं आठ सौ धनुष की होती है । हे आयुष्मन् श्रमण ! उन मनुष्यों के चौसठ पृष्ठ करंडक (पसलियां) हैं। वे मनुष्य स्वभाव से भद्र, स्वभाव से विनीत, स्वभाव से शान्त, स्वभाव से अल्प क्रोधमान-माया, लोभ वाले, मृदुता और मार्दव से सम्पन्न होते हैं, अल्लोन (संयत चेष्टा वाले) हैं, भद्र, विनीत, अल्प, इच्छा वाले, संचय-संग्रह न करने वाले, क्रूर परिणामों से रहित, वृक्षों की शाखाओं के अन्दर रहने वाले तथा इच्छानुसार विचरण करने वाले वे एकोरुकद्वीप के मनुष्य हैं।
हे भगवन् ! उन मनुष्यों को कितने काल के अन्तर से आहार की अभिलाषा होती है ?
हे गौतम ! उन मनुष्यों को चतुर्थभक्त अर्थात् एक दिन छोड़कर दूसरे दिन आहार की अभिलाषा होती है। एकोरुकस्त्रियों का वर्णन
[१४] एगोरुयमणुई णं भंते ! केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्त ?
गोयमा ! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ता अच्चंत विसप्पमाण पउम सुमाल कुम्मसंठिय विसिट्ठचलणाओ उज्जुमिउय पीवर निरंतर पुटु सोहियंगुलीआ उन्नयरइद तलिणतंबसुइणिद्धणखा रोमरहित वट्टलट्ठ संठियअजहण्ण पसत्थ लक्खण अकोप्पजंघयुगला सुणिम्मिय सुगूढजाणुमंडलसुबद्धसंधी कयलिक्खंभातिरेग संठियणिव्वण सुकुमाल मउयकोमल अविरल समसहितसुजात वट्ट पीवरणिरंतरोरु अट्ठावयवीचिपट्टसंठिय पसत्थ विच्छिन्न पिहुलसोणी वदणायामप्पमाणदुगुणित विसाल मंसल सुबद्ध जहणवरधारणीओ वजविराइयपसत्थलक्खणणिरोदरा तिवलि वलियतणुणमिय मज्झिमाओ उज्जुय समसंहित जच्चतणुकसिण णिद्धआदेज लडह सुविभत्त सुजात कंतसोभंत रुइल रमणिज्जरोमराई गंगावत्त