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________________ ३०४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र होती है, उनके शरीर कञ्चन की तरह कांति वाले निर्मल सुन्दर और निरुपहृत (स्वस्थ) होते हैं, वे शुभ बत्तीस लक्षणों से युक्त होते हैं, उनका वक्षः-स्थल कश्चन की शिलातल जैसा उज्ज्वल, प्रशस्त, समतल पुष्ट, विस्तीर्ण और मोटा होता है, उनकी छाती पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित होता है. उनकी भजा नगर की अर्गला के समान लम्बी होती है, इनके बाहु शेषनाग के विपुल-लम्बे शरीर तथा उठाई हुई अर्गला के समान लम्बे होते हैं। इनके हाथों की कलाइयां (प्रकोष्ठ) जूए के समान दृढ, आनन्द देने वाली, पुष्ट, सुस्थित, सुश्लिष्ट (सघन), विशिष्ट, घन, स्थिर, सुबद्ध और निगूढ पर्वसन्धियों वाली हैं। उनकी हथेलियां लाल वर्ण की, पुष्ट, कोमल, मांसल, प्रशस्त लक्षणयुक्त, सुन्दर और छिद्र जाल रहित अंगुलियाँ वाली हैं। उनके हाथों की अंगुलियाँ पुष्ट, गोल, सुजात और कोमल हैं। उनके नख ताम्रवर्ण के, पतले, स्वच्छ, मनोहर और स्निग्ध होते हैं। इनके हाथों में चन्द्ररेखा, सूर्यरेखा, शंखरेखा, चक्ररेखा, दक्षिणावर्त स्वस्तिकरेखा, चन्द्र-सूर्य-शंख-चक्रदक्षिणावर्तस्वस्तिक की मिलीजुली रेखाएँ होती हैं। अनेक श्रेष्ठ, लक्षण युक्त उत्तम, प्रशस्त, स्वच्छ, आनन्दप्रद रेखाओं से युक्त उनके हाथ हैं। उनके स्कंध श्रेष्ठ भैंस, वराह, सिंह, शार्दूल (व्याघ्र), बैल और हाथी के स्कंध की तरह प्रतिपूर्ण, विपुल और उन्नत हैं। उनकी ग्रीवा चार अंगुल प्रमाण और श्रेष्ठ शंख के समान है, उनकी ठुड्ढी (होठों के नीचे का भाग) अवस्थित-सदा एक समान रहने वाली, सुविभक्त-अलगअलग सुन्दररूप से उत्पन्न दाढ़ी के बालों से युक्त, मांसल, सुन्दर संस्थान युक्त, प्रशस्त और व्याघ्र की विपुल ठुड्ढी के समान है, उनके होठ परिकर्मित शिलाप्रवाल और बिंबफल के समान लाल हैं। उनके दांत सफेद चन्द्रमा के दुकडों जैसे विमल-निर्मल हैं और शंख, गाय का दूध, फेन, जलकण और मृणालिका के तंतुओं के समान सफेद हैं, उनके दांत अखण्डित होते हैं, टूटे हुए नहीं होते, अलग-अलग नहीं होते, वे सुन्दर दांत वाले हैं, उनके दांत अनेक होते हुए भी एक पंक्तिबद्ध हैं। उनकी जीभ और तालु अग्नि में तपाकर धोये गये और पुनः तप्त किये गये तपनीय स्वर्ण के समान लाल है। उनकी नासिका गरुड़ की नासिका जैसी लम्बी, सीधी और ऊँची होती है। उनकी आँखें सूर्यकिरणों से विकसित पुण्डरीक कमल जैसी होती हैं तथा वे खिले हुए श्वेतकमल जैसी कोनों पर लाल, बीच में काली और धवल तथा पश्मपुट वाली होती हैं। उनकी भौहें ईषत् आरोपित धनुष के समान वक्र, रमणीय, कृष्ण मेघराजि की तरह काली, संगत (प्रमाणोपेत), दीर्घ, सुजात, पतली, काली और स्निग्ध होती हैं। उनके कान मस्तक के भाग तक कुछ-कुछ लगे हुए और प्रमाणोपेत हैं। वे सुन्दर कानों वाले हैं अर्थात् भलीप्रकार श्रवण करने वाले है। उनके कपोल (गाल) पीन और मांसल होते हैं। उनका ललाट नवीन उदित बालचन्द्र (अष्टमी के चांद) जैसा प्रशस्त, विस्तीर्ण और समतल होता है। उनका मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसा सौम्य होता है। उनका मस्तक छत्राकार और उत्तम होता है। उनका सिर घन-निविड-सुबद्ध, प्रशस्त लक्षणों वाला, कूटाकार (पर्वतशिखर) की तरह उन्नत और पाषाण की पिण्डी की तरह गोल और मजबूत होता है। उनकी खोपड़ी की चमड़ी (केशान्तभूमि) दाडिम के फूल की तरह लाल, तपनीय सोने के समान निर्मल और सुन्दर होती है। उनके मस्तक के बाल खुले किये जाने पर भी शाल्मलि के फल की तरह घने और निविड होते हैं। वे बाल मृदु, निर्मल, प्रशस्त, सूक्ष्म, लक्षणयुक्त, सुगंधित, सुन्दर, भुजभोजक (रत्नविशेष), नीलमणि (मरकतमणि), भंवरी, नील और काजल के समान काले, हर्षित
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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