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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :एकोरुक द्वीप के पुरुषों का वर्णन] [३०३ ते णं मणुया हंसस्सरा कोंचस्सरा नंदिघोसा सीहस्सरा सीहयोसा मंजुस्सरा मंजुघोसा सुस्सरा सुस्सरनिग्घोसा छायाउज्जोतियंगमंगा वज्जरिसभनारायसंघयणा, समचउरंससंठाणसंठिया सिणिद्धछवी णिरायंका उत्तमपसत्थ अइसेसनिरुवमतणु जल्लमलकलंक सेयरयदोस वज्जियसरीरा निरुवमलेवा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोतपरिणामा सउणिव्व पोसचिट्ठेतरोरुपरिणया विग्गहिय उन्नयकुच्छी पउमुप्पलसरिस गंधणिस्सास सुरभिवदणा अट्ठधणुसयं ऊसिया। तेसिं मणुयाणं चउसट्टि पिट्टिकरंडगा पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं मणुया पगइभद्दगा पगतिविणीयगा पगइउवसंता पगइपयणु कोहमाणमायालोभामिउमद्दव संपण्णाअल्लीण भद्दगा विणीया अप्पिच्छा असंनिहिसंचया अचंडा विडिमंतरपरिवसणा जहिच्छियकामगामिणो य ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो। तेसिं णं भंते ! मणुयाणं केवइकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ ? गोयमा ! चउत्थभत्तस्स आहारढे समुप्पज्जइ । [१११] (१३) हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप में मनुष्यों का आकार-प्रकारादि स्वरूप कैसा है ? हे गौतम ! वे मनुष्य अनुपम सौम्य और सुन्दर रूप वाले हैं। उत्तम भोगों के सूचक लक्षणों वाले हैं, भोगजन्य शोभा से युक्त हैं। उनके अंग जन्म से ही श्रेष्ठ और सर्वांग सुन्दर हैं। उनके पांव सुप्रतिष्ठित और कछुए की तरह सुन्दर (उन्नत) हैं, उनके पांवों के तल लाल और उत्पल (कमल) के पत्ते के समान मृदु, मुलायम और कोमल हैं, उनके चरणों में पर्वत, नगर, समुद्र, मगर, चक्र, चन्द्रमा आदि के चिन्ह हैं, उनके चरणों की अंगुलियाँ क्रमशः बड़ी छोटी (प्रमाणोपेत) और मिली हुई हैं, उनकी अंगुलियों के नख उन्नत (उठे हुए) पतले ताम्रवर्ण के एवं स्निग्ध (कांति वाले) हैं । उनके गुल्फ (टखने) संस्थित (प्रमाणोपेत) घने और गूढ हैं, हरिणी और कुरुविंद (तृणविशेष) की तरह उनकी पिण्डलियां क्रमशः स्थूल-स्थूलतर और गोल हैं, उनके घुटने संपुट में रखे हुए की तरह गूढ (अनुपलक्ष्य) हैं, उनकी उरू-जांघे हाथी की सूंड की तरह सुन्दर, गोल और पुष्ट हैं, श्रेष्ठ मदोन्मत्त हाथी की चाल की तरह उनकी चाल है, श्रेष्ठ घोड़े की तरह उनका गुह्यदेश सुगुप्त है, आकीर्णक अश्व की तरह मलमूत्रादि के लेप से रहित है, उनकी कमर यौवनप्राप्त श्रेष्ठ घोड़े और सिंह की कमर जैसी पतली और गोल है, जैसे संकुचित की गई तिपाई, मूसल दर्पण का दण्ड और शुद्ध किये हुए सोने की मूंठ बीच में से पतले होते हैं उसी तरह उनकी कटि (मध्यभाग) पतली है, उनकी रोमराजि सरल-सम-सघन-सुन्दर-श्रेष्ठ, पतली, काली, स्निग्ध, आदेय, लावण्यमय, सुकुमार, सुकोमल और रमणीय है, उनकी नाभि गंगा के आवर्त की तरह दक्षिणावर्त तरंग (त्रिवली) की तरह वक्र और सूर्य की उगती किरणों से खिले हुए कमल की तरह गंभीर और विशाल है। उनकी कुक्षि (पेट के दोनों भाग) मत्स्य और पक्षी की तरह सुन्दर और पुष्ट हैं, उनका पेट मछली की तरह कृश है, उनकी इन्द्रियां पवित्र हैं, इनकी नाभि कमल के समान विशाल है, इनके पार्श्वभाग नीचे नमे हुए हैं, प्रमाणोपेत हैं, सुन्दर हैं, जन्म से सुन्दर हैं, परिमित मात्रा युक्त, स्थूल और आनन्द देने वाले हैं, उनकी पीठ की हड्डी मांसल होने से अनुपलक्षित
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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