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________________ ३००] [जीवाजीवाभिगमसूत्र हैं। जिस प्रकार हार (अठारह लडियों वाला) अर्धहार (नौ लडियों वाला), वेष्टनक (कर्ण का आभूषण), मुकुट, कुण्डल, वामोत्तक (छिद्र-जाली वाला आभूषण), हेमजालमणिजाल-कनकजाल (ये कान के आभूषण हैं), सत्रक (सोने का डोरा-उपनयन), उच्चयित कटक (उठा हुआ कड़ा या चूड़ी), मुद्रिका (अंगूठी), एकावली (मणियों की एक सूत्री माला), कण्ठसूत्र, मकराकार आभूषण, उरःस्कन्ध ग्रैवेयक (गले का आभूषण), श्रोणीसूत्र (करधनी-कन्दौरा), चूडामणि (मस्तक का भूषण), सोने का तिलक (टीका), पुष्प के आकार का ललाट का आभरण (बिंदिया), सिद्धार्थक (सर्षप प्रमाण सोने के दानों से बना भूषण), कर्णपाली (लटकन), चन्द्र के आकार का भूषण, सूर्य के आकार का भूषण, (ये बालों में लगाये जाने वाले पिन जैसे हैं), वृषभ के आकार के , चक्र के आकार के भूषण, तल भंगक-त्रुटिक (ये भुजा के आभूषण-भुजबंद हैं), मालाकार हस्ताभूषण, वलक्ष (गले का भूषण), दीनार की आकृति की मणिमाला, चन्द्र-सूर्यमालिका, हर्षक, केयूर, वलय, प्रालम्बनक (झुमका), अंगुलीयक (मुद्रिका), काञ्ची, मेखला, कलाप, प्रतरक, प्रातिहारिक, पाँव में पहने जाने वाले धुंघरु, किंकणी (बिच्छुडी), रत्नमय कन्दौरा, नूपुर, चरणमाला, कनकनिकर माला आदि सोना-मणि रत्न आदि की रचना से चित्रित और सुन्दर आभूषणों के प्रकार हैं उसी तरह वे मण्यंग वृक्ष भी नाना प्रकार के बहुत से स्वाभाविक परिणाम से परिणत होकर नाना प्रकार के भूषणों से युक्त होते हैं। वे दर्भ, कांस आदि से रहित मूल वाले हैं और श्री से अतीव शोभायमान गेहाकार कल्पवृक्ष [११] एगोरुयदीवेणंदीवेतत्थतत्थ बहवेगेहागारानामदुमगणापण्णत्तासमणाउसो! जहा से पागाराट्टालक चरियंगोपुरपासायाकासतल मंडव एगसाल विसालगतिसालग चउरंस चउसालगभघर मोहणघर वलभिघर चित्तसाल मालय भत्तियर वट्टतंस चउरंस दियावत्त संठियायत पंडुरतल मुंडमालहम्मियं अहव णं धवलहरअद्धमागहविब्भमसेलद्धसेल संठिय कूडागारड्ड सुविहिकोट्ठगअणेगघर सरणलेणआवण विडंगजाल चंदणिज्जूहअपवरक दोवालि चंदसालियरूव विभत्तिकलिया भवणविही बहुविकप्पा तहेव ते गेहागारा वि दुमगणा अणेगबहुविविधवीससा परिणयाए सुहारूहणेसुहोत्ताराए सुहनिक्खमणप्पवेसाए ददरसोपाणपंति कलियाए पइरिक्काए सुहविहाराए मणोणुकूलाए भवणविहीए उववेया कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥९॥ [१११] (११) हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से गेहाकार नाम के कल्पवृक्ष कहे गये हैं। जैसे-प्राकार (परकोटा), अट्टालक (अटारी), चरिका (प्राकार और शहर के बीच आठ हाथ प्रमाण मार्ग) द्वार (दरवाजा) गोपुर (प्रधानद्वार) प्रासाद (राजमहल) आकाशतल (अगासी) मंडप (पाण्डाल) एक खण्ड वाले मकान, दो खण्ड वाले मकान, तीन खण्ड वाले मकान, चौकोन, चार खण्ड वाले मकान गर्भगृह (भौंहरा) मोहनगृह (शयनकक्ष) वलभिघर (छज्जा वाला घर) चित्रशाला से सजित प्रकोष्ठ गृह, भोजनालय, गोल, तिकोने, चौरस, नंदियावर्त आकार के गृह, पाण्डुर-तलमुण्डमाल (छत
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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