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तृतीय प्रतिपत्ति :अनग्न कल्पवृक्ष]
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रहित शुभ्र आंगन वाला घर) हर्म्य (शिखर रहित हवेली) अथवा धवल गृह (सफेद पुते सौध), अर्धगृहमागधगृह-विभ्रमगृह (विशिष्ट प्रकार के गृह) पहाड़ के अर्धभाग जैसे आकार के, पहाड़ जैसे आकार के गृह, पर्वत के शिखर के आकार के गृह, सुविधिकोष्टक गृह (अच्छी तरह से बनाये हुए कोठों वाला गृह) अनेक कोठों वाला गृह, शरणगृह. शयनगृह आपणगृह(दुकान) विडंग (छज्जा वाले गृह) जाली वाले घर नियूह (दरवाजे के आगे निकला हुआ काष्ठ भाग) कमरों और द्वार वाले गृह और चाँदनी आदि से युक्त जो नाना प्रकार के भवन होते हैं, उस प्रकार वे गेहाकार वृक्ष भी विविध प्रकार के बहुत से स्वाभाविक परिणाम से परिणत भवनों और गृहों से युक्त होते हैं। उन भवनों में सुखपूर्वक चढ़ा जा सकता है और सुखपूर्वक उतरा जा सकता है, उनमें सुखपूर्वक प्रवेश और निष्क्रमण हो सकता है, उन भवनों के चढाव के सोपान (पंक्तियां) समीप-समीप हैं, विशाल होने से उनमें सुखरूप गमनागमन होता है और वे मन के अनुकूप होते हैं। ऐसे नाना प्रकार के भवनों से युक्त वे गेहाकार वृक्ष हैं। उनके मूल कुश-विकुश से रहित हैं और वे श्री से अतीव शोभित हैं ॥९॥ अनग्न कल्पवृक्ष - [१२] एगोरुयदीवेणं दीवेतत्थतत्थ बहवेअणिगणाणामं दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से आजिणगखोम कंबल दुगुल्ल कोसेज्ज कालमिग पट्टचीणंसुय वरणातवार वणिगयतु आभरण चित्त सहिणग कल्लाणग भिंगिणीलकज्जल बहुवण्ण रत्तपीत सुक्किलमक्खय मिगलोम हेमरूप्पवण्णगअवरुत्तग सिंधुओस दामिल बंगकलिंग नेलिण तंतुमयभत्तिचित्ता वत्थविही बहुप्पकारा हवेज्ज वरपट्टणुग्गया वण्णरागकलिया तहेव ते अणिगणावि दुमगणा अणेग बहुविविह वीससा परिणयाए वत्थविहीए उववेया कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिटुंतिः ॥१०॥ - [१११] (१२) हे आयुष्मन् श्रमण! उस एकोरुक द्वीप में जहां-तहाँ अनग्न नाम के कल्पवृक्ष हैं। जैसे-यहाँ नाना प्रकार के आजिनक-चर्मवस्त्र, क्षोम-कपास के वस्त्र, कंबल-ऊन के वस्त्र, दुकूल-मुलायम बारीक वस्त्र, कोशेय-रेशमी कीड़ों से निर्मित वस्त्र, काले मृग के चर्म से बने वस्त्र, चीनांशुक-चीन देश में निर्मित वस्त्र, (वरणात वारवणिगयतु-यह पाठ अशुद्ध लगता है। नाना देश प्रसिद्ध वस्त्र का वाचक होना चाहिए।) आभूषणों के द्वारा चित्रित वस्त्र, श्लक्ष्ण-बारीक तन्तुओं से निष्पन्न वस्त्र, कल्याणक वस्त्र (महोत्सवादि पर पहनने योग्य उत्तमोत्तम वस्त्र) भंवरी नील और काजल जैसे वर्ण के वस्त्र, रंग-बिरंगे वस्त्र, लाल-पीले सफेद रंग के वस्त्र, स्निग्ध मृगरोम के वस्त्र, सोने चाँदी के तारों से बना वस्त्र, ऊपर-पश्चिम देश का बना वस्त्र, उत्तर देस का बना वस्त्र, सिन्धु ऋषभ तामिल बंग-कलिंग के देशों में बना हुआ सूक्ष्म तन्तुमय बारीक वस्त्र, इत्यादि नाना प्रकार के वस्त्र हैं जो श्रेष्ठ नगरों में कुशल कारीगरों द्वारा बनाये जाते हैं, सुन्दर वर्ण रंग वाले हैं-उसी प्रकार वे अनग्न वृक्ष भी अनेक और बहुत प्रकार के स्वाभाविक परिणाम से परिणत विविध वस्त्रों से युक्त हैं। वे वृक्ष कुश-काश से रहित मूल वाले यावत् श्री से अतीव अतीव शोभायमान हैं ॥१०॥