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________________ २८६ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र नो तिणढे समढे। अविसुद्धलेस्से णंअणगारे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविंअणगारं जाणइ पासइ ? नो तिणढे समढे। विसुद्धलेस्सेणं भंते ! अणगारे असमोहएणंअप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ? हंता, जाणइ पासइ। जहा अविसुद्धलेस्से णं आलावगा एवं विसुद्धलेसे णं वि छ आलावगा भाणियव्वा जाव विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ ? हंता ! जाणइ पासइ। [१०३] हे भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घात से विहीन आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या ? __ हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है अर्थात् नहीं जानता-देखता है। भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि विहीन आत्मा द्वारा विशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है । भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घातयुक्त आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या ? . हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है। हे भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घातयुक्त आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या ? हे गौतम ! यह अर्थ ठीक नहीं है। हे भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार जो वेदनादि समुद्घात से ना तो पूर्णतया युक्त है और न सर्वथा विहीन है, ऐसी आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी को और अनगार को जानतादेखता है क्या ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है। भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार समवहत-असमवहत आत्मा द्वारा विशुद्धलेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानता-देखता है क्या ? गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है । भगवन् ! विशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घात असमवहत आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्यावाले
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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