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तृतीय प्रतिपत्ति: निर्लेप सम्बन्धी कथन ]
अवसर्पिणियां समाप्त हो जावेंगी। इसी प्रकार उत्कृष्ट से एक ही काल में जब वे अधिक से अधिक उत्पन्न होते हैं उस अपेक्षा से भी यदि उनमें एक-एक समय में एक-एक जीव का अपहार किया जावे तो भी उनके पूरे अपहरण में असंख्यात उत्सर्पिणियां और असंख्यात अवसर्पिणियां समाप्त हो जावेंगी तब वे पूरे अपहृत होंगे। जघन्य पद वाले अभिनव उत्पद्यमान पृथ्वीकायिक जीवों की अपेक्ष जो उत्कृष्ट पदवर्ती अभिनव पृथ्वीकायिक जीव उत्पन्न होते हैं वे असंख्यातगुण अधिक हैं। क्योंकि जघन्य पदोक्त असंख्यात से उत्कृष्ट पदोक्त असंख्यात असंख्यातगुण अधिक है ।
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इसी तरह अभिनव, अप्कायिक तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों की निर्लेपना समझनी चाहिए। अभिनव वनस्पतिकायिक जीवों की निर्लेपना सम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि उन जीवों की न तो जघन्यपद में और न उत्कृष्टपद में निर्लेपना सम्भव है । क्योंकि वे जीव अनन्तानन्त हैं । अतएव वे 'इतने समय में निर्लिप्त या अपहृत हो जावेंगे' ऐसा कहना सम्भव नहीं है । उक्त पद द्वारा वे नहीं कहे जा सकते, अतएव उन्हें 'अपद' कहा गया है ।
प्रत्युपन्न त्रसकायिक जीवों की निर्लेपना का काल जघन्यपद में सागरोपमशतपृथक्त्व है अर्थात् दो सौ सांगरोपम से लेकर नौ सौ सागरोपम जितने काल में उन अभिनव त्रसकायिक जीवों का अपहार सम्भव है । उत्कृष्ट में भी यही सागरोपमशतपृथक्त्व निर्लेपना का काल जानना चाहिए, परन्तु यह उत्कृष्टपदोक्त काल जघन्यपदोक्त काल से विशेषाधिक जानना चाहिए ।
अविशुद्ध-विशुद्ध लेश्या वाले अनगार का कथन
१०३. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ ?
गोयमा ! नो इणट्टे समट्टे ।
अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ ?
गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे ।
अविसुद्धस्से णं भंते! अणगारे समोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ ?
गोयमा ! नो इणट्टे समट्ठे ।
अविसुद्धलेस्से अणगारे समोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ
पासइ ?
नो इट्टे सट्टे ।
अविसुद्धलेस्से णं भंते! अणगारे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ ?