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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: तिर्यग् अधिकार ] तेसिं णं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागं । तेसिं णं भंते! जीवाणं कति समुग्धाया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा - वेदणासमुग्धाए जाव तेयासमुग्धाए । ते णं भंते ! जीवा मारणांतियसमुग्धाएणं किं समोहया मरंति, असमोहया मंरति ? गोमा ! समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति । णं भंते! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जंति ? किं नेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति । पुच्छा ? गोमा ! एवं उव्ववट्टणा भाणियव्वा जहा वक्कंतीए तहेव । तेसिं णं भंते ! जीवाणं कइ जातिकुलकोडिजोणिपमुह सयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! बारस जातिकुलकोडिजोणिपमुह सयसहस्सा । [९७] (१) हे भगवन् ! इन जीवों (पक्षियों) के कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! छह लेश्याएँ हो सकती हैं- कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । (द्रव्य और भाव से छहों लेश्यायें सम्भव हैं, क्योंकि वैसे परिणाम हो सकते हैं ।) हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि है, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं । गौतम ! सम्यग्दृष्टि भी हैं, मिथ्यादृष्टि भी हैं और मिश्रदृष्टि भी हैं। [२६९ भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी है वे दो या तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं। भगवन् ! वे जीव क्या मनयोगी, हैं, वचनयोगी हैं, काययोगी हैं ? गौतम ! वे तीनों योग वाले हैं। भगवन् ! वे जीव साकार - उपयोग वाले हैं या अनाकार - उपयोग वाले हैं ? गौतम ! साकार - उपयोग वाले भी हैं और अनाकार- उपयोग वाले भी हैं । भगवन् ! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं क्या नैरयिकों से आते हैं या तिर्यक्योनि से आते हैं इत्यादि प्रश्न कहना चाहिए । गौतम ! असंख्यात वर्ष की आयु वालों, अकर्मभूमिकों और अन्तद्वपिकों को छोड़कर सब जगह से उत्पन्न होते 1 हे भगवन् ! उन जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग - प्रमाण स्थिति है । भगवन् ! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे गये हैं ?
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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