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________________ २६८ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र ___ गौतम ! तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा गया हैं, यथा-अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम । अण्डज तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक।पोतज तीन प्रकार के हैं स्त्री, पुरुष और नपुंसक. सम्मूर्छिम सब नपुंसक होते हैं। विवेचन-तिर्यक्योनिकों के भेद पाठसिद्ध ही हैं, अतएव स्पष्टता की आवश्यकता नहीं है। केवल योनिसंग्रह की स्पष्टता इस प्रकार है ___ योनिसंग्रह का अर्थ है-योनि (जन्म) को लेकर किया गया भेद। पक्षियों के जन्म तीन प्रकार के हैं-अण्ड से होने वाले, यथा मोर आदि; पोत से होने वाले वागुली आदि और सम्मूर्छिम जन्म वाले पक्षी हैं-खञ्जरीट आदि। वैसे सामान्यतया चार प्रकार का योनिसंग्रह है-१. जरायुज २. अण्डज ३. पोतज और ४.सम्मूर्छिम। पक्षियों में जरायुज की प्रसिद्धि नहीं है। फिर भी अण्डज को छोड़कर शेष सब जरायुज अजरायुज गर्भजों का पोतज में समावेश करने पर तीन प्रकार का योनिसंग्रह संगत होता है। अण्डज तीनों प्रकार के हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक। पोतज भी तीनों लिंग वाले हैं। सम्मूर्छिम जन्म वाले नपुंसक ही होते हैं, क्योंकि उनके नपुसंकवेद का उदय अवश्य ही होता है। द्वारप्ररूपणा ९७. [१] एएसिं णं भंते ! जीवाणं कतिलेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा। ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्टी मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्टी? गोयमा ! सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठी वि सम्मामिच्छदिट्ठी वि। ते णं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी? गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि, तिण्णि णाणाई तिण्णि अण्णाणाइं भयणाए। ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी ? गोयमा ! तिविहा वि। भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गायमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता ते णं भंते ! जीवा कओ उववजंति, किं न तो उववजंति, तिरिक्खजोणिएहिं उववज्जति ? पुच्छा। गोयमा ! असंखेज वासाउय अकम्मभूमग अंतरदीवग वजेहिंतो उववति। अण्डज को छोड़कर शेष सब जरायु वाले या बिना जरायु वाले गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रियों का पोतज में समावेश किया गया है। अतएव तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा है, चार प्रकार का नहीं। वैसे पक्षियों में जरायुज होते ही नहीं हैं, अतएव यहां तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा है।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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