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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
[८६] (१) भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या असंज्ञी जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, सरीसृपों से आकर उत्पन्न होते हैं, पक्षियों से आकर उत्पन्न होते हैं, चौपदों से आकर उत्पन्न होते हैं, (सर्पादि) उरगों से आकर उत्पन्न होते हैं, स्त्रियों से आकर उत्पन्न होते हैं या मत्स्यों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
गौतम ! असंज्ञी जीवों से आकर भी उत्पन्न होते हैं और यावत् मत्स्य और मनुष्यों से आकर भी उत्पन्न होते हैं। (यहाँ यह गाथा अनुसरणीय है)
असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक, सरीसृप दूसरी नरक तक, पक्षी तीसरी नरक तक, सिंह चौथी नरक तक, उरग पांचवी नरक तक, स्त्रियां छठी नरक तक और मत्स्य एवं मनुष्य सातवीं नरक तक जाते हैं।
विवेचन-उपपात का वर्णन करते हुए इस सूत्र में जो दो गाथाएं दी गई हैं, उनका अर्थ यह समझना चाहिए कि असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक ही जाते हैं, न कि असंज्ञीजीव ही प्रथम नरक में जाते हैं। इसी तरह सरीसृप-गोधा नकुल आदि दूसरी पृथ्वी तक ही जाते हैं, न कि सरीसृप ही दूसरी नरक में जाते हैं। पक्षी तीसरी नरक तक जाते हैं, न कि पक्षी ही तीसरी नरक में जाते हैं। इसी तरह आगे भी समझना चाहिए।
शर्कराप्रभादि नरकपृथ्वी को लेकर पाठ इस प्रकार होगा
'सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए नेरइया किं असण्णीहिंतो उववज्जंति जाव मच्छमणुएहितो उववजंति ? गोयमा ! नो असन्नीहितो उववज्जंति सरीसिवेहिंतो उववज्जंति जाव मच्छमणुस्सेहिंतो उववज्जंति। बालुयप्पभाए णं भंते ! पुढवीए नेरइया किं असण्णीहिंतो उववज्जंति जाव मच्छमणुस्सेहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! नो असण्णीहिंतो उववजंति नो सरीसिवेहिंतो उववज्जंति, पक्खीहिंतो उववज्जंति जाव मच्छमणुस्सहिंतो उववज्जंति।'
उक्त रीति से उत्तर-उत्तर पृथ्वी में पूर्व-पूर्व के प्रतिषेध सहित उत्तरप्रतिषेध तब तक कहना चाहिए जब तक कि सप्तम पृथ्वी में स्त्री का भी प्रतिषेध हो जाए। वह पाठ इस प्रकार होगा-'अहेसत्तमाए णं भंते पुढवीए नेरइया किं असण्णीहिंतो उववज्जति जाव मच्छमणुस्सहिंतो उववजंति ? गोयमा ! नो असण्णीहितो उववज्जति जाव नो इत्थीहिंतो उववज्जंति, मच्छमणुस्सेहिंतो उववज्जंति।' संख्याद्वार
८६[२] इमीसेणंभंते ! रयणप्पभाए पुढवीएणेरइया एक्कसमयेणं केवइया उववज्जति?
गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखिज्जा वा उववजंति, एवं जाव अहेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा केवइकालेणं अवहिया सिया?
गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया। जाव अहेसत्तमाए।