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तृतीय प्रतिपत्ति: अवगाहनाद्वार]
[८६] (२) हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में नारकजीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य से एक, दो, तीन, उत्कृष्ट से संख्यात या असंख्यात भी उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए।
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का प्रतिसमय एक-एक का अपहार करने पर कितने काल में यह रत्नप्रभापृथ्वी खाली हो सकती है ?
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गौतम ! नैरयिक जीव असंख्यात हैं । प्रतिसमय एक-एक नैरयिक का अपहार किया जाय तो असंख्यात उत्सर्पिणियां असंख्यात अवसर्पिणियां बीत जाने पर भी यह खाली नहीं हो सकते ।
इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक कहना चाहिए ।
विवेचन - नारकजीवों की संख्या बताने के लिए असत्कल्पना के द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि प्रतिसमय एक-एक नारक का अपहार किया जाय तो असंख्यात उत्सर्पिणियां और असंख्यात अवसर्पिणियां बीतने पर उनका अपहार होता है। इस प्रकार का अपहार न तो कभी हुआ, न होता है और न होगा ही । यह केवल कल्पना मात्र है, जो नारक जीवों की संख्या बताने के लिए की गई है।
अवगाहनाद्वार
८६. [ ३ ] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्त्रेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं सत्त धणूइं तिण्णि य रयणीओ छच्च अंगुलाई ।
तत्थ णं जेसे उत्तरवेव्विए से जहन्नणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं पण्णरस ई अड्डाइज्जाओ रयणीओ।
दोच्चार, भवधारणिज्जे जहन्त्रेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पण्णरस धणूइं अड्डाइज्जाओ रयणीओ,
उत्तरवेउव्विया जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूइं एक्कारयणी । तच्चाए, भवधारणिजे एक्कतीसं धणू एक्का रयणी,
उत्तरवेउव्विया बासड्डुिं धणूई दोण्णि रयणीओ ।
चउत्थीए, भवधारणिज्जे बासट्ठ धणूइं दोण्णि य रयणीओ,
उत्तरवेउव्विया पणवीसं धणुस ।
पंचमीए भवधारणिजे पणवीसं धणुसयं, उत्तरवेउव्विया अड्डाइज्जाई धणुसयाई । छट्टीए भवधारणिज्जा अड्डाइज्जाई धणुसयाई,