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________________ २३०] . [जीवाजीवाभिगमसूत्र प्रकार सप्तम पृथ्वी के नरकावासों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि वह उसके किसी नरकावास को पार कर सकता है शेष किसी को पार नहीं कर सकता है। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में नरकावासों का विस्तार उपमा द्वारा बताया गया है। नरकावासों के विस्तार के सम्बन्ध में पहले प्रश्न किया जा चुका है और उसका उत्तर देते हुए कहा गया है कि कोई नरकावास असंख्येय हजार योजन विस्तार वाले हैं। असंख्येय हजार योजन कहने से यह स्पष्ट नहीं होता की यह असंख्येयता कितनी है ? अतः उस असंख्येयता को स्पष्ट करते हुए भगवान् ने एक उपमा के द्वारा उसे स्पष्ट किया है। वह उपमा इस प्रकार है हम जहाँ रह रहे हैं वह द्वीप जम्बूद्वीप है। आठ योजन ऊँचे रत्नमय जम्बूवृक्ष को लेकर इस द्वीप का यह नामकरण है। यह जम्बूद्वीप सर्व द्वीपों और सर्व समुद्रों में आभ्यन्तर है अर्थात् आदिभूत है और उन सब द्वीप-समूहों में छोटा है। क्योंकि आगे के सब लवणादि समुद्र और धातकीखण्डादि द्वीप क्रमशः इस जम्बूद्वीप से दूने-दूने आयाम-विष्कम्भ वाले हैं। यह जम्बूद्वीप गोलाकार है क्योंकि यह तेल में तले हुए पूए के समान आकृति वाला है। यहाँ 'तेल से तले हुए' विशेषण देने का तात्पर्य यह है कि तेल में तला हुआ पूआ प्रायः जैसा गोल होता है वैसा घी में तला हुआ पूआ गोल नहीं होता। वह रथ के पहिए के समान, कमल की कर्णिका के समान तथा परिपूर्ण चन्द्रमा के समान गोल है। नाना देश के विनेयों को समझाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपमान-उपमेय बताये गये हैं। इस जम्बूद्वीप का आयाम-विष्कम्भ एक लाख योजन है। इसकी परिधि (घेराव) तीन लाख, सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन, तीन कोस एक सौ अट्ठावीस धनुष और साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। ___ इतने विस्तारवाले इस जम्बूद्वीप को कोई देव जो बहुत बड़ी ऋद्धि का स्वामी है, महाद्युति वाला है, महाबल वाला है, महायशस्वी है, महा ईश है अर्थात् बहुत सामर्थ्य वाला है अथवा महा सुखी है अथवा महाश्वास है-जिसका मन और इन्द्रियां बहुत व्यापक और स्वविषय को भलीभांति ग्रहण करने वाली हैं, तथा जो विशिष्ट विक्रिया करने में अचिन्त्य शक्तिवाला है, वह अवज्ञापूर्वक (हेलया) 'अभी पार कर लेता हूँ' ऐसा कहकर तीन चुटुकियां बजाने में जितना समय लगता है उतने मात्र समय में उक्त जम्बूद्वीप के २१ चक्कर लगाकर वापस आ जावे-इतनी तीव्र गति से, इतनी उत्कृष्ट गति से, इतनी त्वरित गति से, इतनी चपल गति से, इतनी प्रचण्ड गति से, इतने वेग वाली गति से, इतनी उद्धृत गति से, इतनी दिव्य गति से यदि वह देव एक दिन से लगाकर छह मास पर्यन्त निरन्तर चलता रहे तो भी रत्नप्रभादि के नरकावासों में से किसी का तो वह पार पा सकता है और किसी का पार नहीं पा सकता. इतने विस्तार वाले वे नरकावास हैं। इसी तरह तमःप्रभा तक ऐसा ही कहना चाहिए।सातवीं पृथ्वी में ५ नरकावास हैं। उनमें से मध्यवर्ती एक अप्रतिष्ठान नामक नरकावास लाख योजन विस्तार वाला है अतः उसका पार पाया जा सकता है। शेष चार नरकावास असंख्यात कोटि-कोटि योजन प्रमाण होने से उनका पार पाना सम्भव नहीं है। इस तरह उपमान प्रमाण द्वारा नरकावासों का विस्तार कहा गया है।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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