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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : नरकावास कितने बड़े हैं ?] [२२९ गौतम ! जैसे तलवार की धार का , उस्तरे की धार का, कदम्बचीरिका (तृणविशेष जो बहुत तीक्ष्ण होता है) के अग्रभाग का, शक्ति (शस्त्रविशेष के अग्रभाग का, भाले के अग्रभाग का, तोमर के अग्रभाग का, बाण के अग्रबाग का, शूल के अग्रभाग का, लगुड़ के अग्रभाग का, भिण्डीपाल के अग्रभाग का, सुइयों के समूह के अग्रभाग का, कपिकच्छु (खुजली पैदा करने वाली, वल्ली), बिच्छु का डंक, अंगार, ज्वाला, मुर्मुर (भोभर की अग्नि), अर्चि, अलात (जलती लकड़ी), शुद्धाग्नि (लोहपिण्ड की अग्नि) इन सबका जैसा स्पर्श होता है, क्या वैसा स्पर्श नरकावासों का है ? भगवान् ! ने कहा कि ऐसा नहीं है। इनसे भी अधिक अनिष्टतर यावत् अमणाम उनका स्पर्श होता है। इसी तरह अधःसप्तमपृथ्वी तक के नरकावासों का स्पर्श जानना चाहिए। नरकावास कितने बड़े हैं ? ८४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नरगा केमहालिया पण्णत्ता? गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे, तेल्लापूयसंठासंठिए वट्टे, रथचक्कवालसंठिए वट्टे, पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए वट्टे, पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणंजाव किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, देवेणं महड्डिए जाव महाणुभागे जाव इणामेव त्ति कटु इमं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहि तिसत्तक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्याए उद्धृयाए जयणाए छेगाए दिव्वाए दिव्वगईए वीइवयमाणे वीइवयमाणे जहण्णेणं एगाहं वा दुयाहं वा तिआहं वा, उक्कोसेणं छम्मासेणं वीतिवएज्जा, अत्थेगइए वीइवएज्जा अत्थेगइए नो वीइवएज्जा, एमहालया णं गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा पण्णत्ता; एवं जाव अहे सत्तमाए, णवरं अहेसत्तमाए अत्थेगइयं नरगं वीइवएज्जा, अत्थेगइए नरगे नो वीतिवएज्जा। [८४] हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास कितने बड़े कहे गये हैं ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप नाम का द्वीप जो सबसे आभ्यन्तर-अन्दर है, जो सब द्वीप-समुद्रों में छोटा है, जो गोल है क्योंकि तेल में तले हुए पूए के आकार का है, यह गोल है क्योंकि रथ के पहिये के आकार का है, यह गोल है क्योंकि कमल की कर्णिका के आकार का है, यह गोल है क्योंकि परिपूर्ण चन्द्रमा के आकार का हैं, जो एक लाख योजन का लम्बा-चौड़ा है, जिसकी परिधि (३ लाख १६ हजार २ सौ २७ योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठावीस धनुष और साढे तेरह अंगुल से) कुछ अधिक है। उसे कोई देव जो महर्द्धिक यावत् महाप्रभाव वाला है, 'अभी-अभी' कहता हुआ (अवज्ञा से) तीन चुटकियाँ बजाने जितने काल में इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के २१ चक्कर लगाकर आ जाता है, वह देव उस उत्कृष्ट, त्वरित, चपल, चण्ड, शीघ्र, उद्धत, वेगवाली, निपुण, ऐसी दिव्य देवगति से चलता हुआ एक दिन, दो दिन, तीन यावत् उत्कृष्ट छह मास पर्यन्त चलता रहे तो भी वह उन नरकावासों में से किसी को पार कर सकेगा और किसी को पार नहीं कर सकेगा। हे गौतम ! इतने विस्तार वाले इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास कहे गये हैं। इस
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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