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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : सातों पृथ्वियों की अलोक से दूरी] [२०७ लोयंते पण्णत्ते? गोयमा ! दुवालसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते, एवं दाहिणिल्लाओ, पच्चथिमिल्लाओ, उत्तरिल्लाओ। सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ केवइयं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते? गोयमा ! तिभागूणेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते। एवं चउद्दिसिं वि। बालुयप्पभाए पुढविए पुरथिमिल्लाओ पुच्छा ? गोयमा ! सतिभागेहिं तेरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते। एवं चउद्दिसिं पि; एवं सव्वासिं चउसु दिसासु पुच्छियव्वं। पंकप्पभापुढवीए चोदसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते। पंचभाए तिभागणेहिं पन्नरसहिं जोयणेहि अबाहाए लोयंते पण्णत्ते। छट्ठीए सतिभागेहिं पन्नरसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते। सत्तमीए सोलसहिं जोयणेहिं अबाहाए लोयंते पण्णत्ते।एवंजाव उत्तरिल्लाओ। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-घणोदधिवलए, घणवायवलए, तणुवायवलये। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए दाहिणिल्ले चरिमंते कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-एवं जाव उत्तरिल्ले, एवं सव्वासिंजाव अधेसत्तमाए उत्तरिल्ले। [७५] हे भगवान् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के उपरिमान्त से कितने अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है ? गौतम ! बारह योजन के अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है। इसी प्रकार दक्षिणदिशा के, पश्चिमदिशा के और उत्तरदिशा के उपरिमान्त से बारह योजन अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है। हे भगवन् ! शर्कराप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से कितने अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है ? गौतम ! त्रिभाग कम तेरह योजन के अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है। इसी प्रकार चारों दिशाओं को लेकर कहना चाहिए। हे भगवन् ! बालुकापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से कितने अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया त्रिभाग सहित तेरह योजन के अपान्तराल के बाद लोकान्त है। इस प्रकार चारों दिशाओं को लेकर कहना चाहिए। सब नरकपृथ्वियों की चारों दिशाओं को लेकर प्रश्न करना चाहिए। . पंकप्रभा में चौदह योजन के अपान्तराल के बाद लोकान्त है। पांचवीं धूमप्रभा में त्रिभाग कम पन्द्रह योजन के अपान्तराल के बाद लोकान्त है। छठी तमप्रभा में त्रिभाग सहित पन्द्रह योजन के अपान्तराल के
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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