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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
अन्नमनसिणेहपडिबद्धाइं-स्नेह गुण के कारण परस्पर मिले हुए रहते हैं, जिससे एक के चलायमान होने पर दूसरा भी चलित होता है, एक के गृहीत होने पर दूसरा भी गृहीत होता है।
____अन्नमनघडत्ताए चिटुंति-क्षीर-नीर की तरह एक दूसरे में प्रगाढरूप में मिले हुए या समुदित रहते
नरकों का संस्थान
७४. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! झल्लरिसंठिता पण्णत्ता। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिए पण्णत्ते। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा !झल्लरिसंठिए पण्णत्ते। एवंजाव रिठे। एवं पंकबहुले वि एवं आवबहुले वि, घणोदधी वि, घणवाए वि, तणुवाए वि, ओवासंतरे वि। सव्वे झल्लरिसंठिए पण्णत्ते।
सक्करप्पभा णं भंते ! पुढवी किंसंठिया पण्णत्ता ?
गोयमा ! झल्लरिसंठिए पण्णत्ते। एवं जाव ओवासंतरे, जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया एवं जाव अहेसत्तमाए वि।
[७४] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का आकार कैसा है ? गौतम ! झालर के आकार का है। अर्थात् विस्तृत वलयाकार है। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के खरकांड का कैसा आकार है ? गौतम ! झालर के आकार का है। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के रत्नकाण्ड का क्या आकार है ?
गौतम ! झालर के आकार का है। इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक कहना चाहिए। इसी तरह पंकबहुलकांड, अप्बहुलकांड, घनोदधि, घनवात, तनुवात और अवकाशान्तर भी सब झालर के आकार के हैं।
भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी का आकार कैसा हैं ? गौतम ! झालर के आकार का है। भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के घनोदधि का आकार कैसा है ? गौतम ! झालर के आकार का है। इसी प्रकार अवकाशान्तर तक कहना चाहिए।
शर्कराप्रभा की वक्तव्यता के अनुसार शेष पृथ्वियों की अर्थात् सातवीं पृथ्वी तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए। सातों पृथ्यिवयों की अलोक से दूरी
७५. इमीसेणंभंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्लाओ उवरिमंताओ केवइयं अबाधाए